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________________ युगवीर-निबन्धावली मिनोनीकी श्रेणीका है । परन्तु उसने क्या जैन सिद्धातकी रक्षा हो जायगी, अथवा जैनपर होते हर प्रहार रुक जायेंगे, यह उन लोगोको नमन नही पता | हमारे ये पंडित प्रत्यक्ष देखने हैं कि एक जोकर भयंके मारे आंखें वन्द करके बैठ जाता है उसकी रक्षा नही होती-बिल्ली चटने आकर उसकी गर्दन नरोट जलती है। फिर भी ये उनी प्रकार आँख बन्द करनेका उपदेश देते हैं | यह नव उन लोगोके बीमार होनेका सुनक नहीं तो और क्या है ? उन पहनके इस उपदेशसे बहुत कुछ हानि पहुँची है। बहुत समर्थ श्रीमान और विनने ही विद्वानो तक्ने जैनजगत् ( वर्तमान रान्यसदेश ) को पढ़ना छोड़ दिया है और उससे उन्हे यह पता तक नही कि युद्ध क्षेत्र में क्या कुछ हो रहा है और जैनrain tear traके किन- किस अग पर कैने- कैसे प्रहार किये जा रहे है । फिर वे उसकी रक्षाका उपाय भी क्या कर सकते हैं और कैसे अपने दिग्गज विद्वानोको युद्धके मैदानमे उतरने के लिये वाध्यते हैं ? इसी प० दरवारीलालजीकी प्राय एकतरफा विजय होती हुई दिखाई देती है । इन दिग्गज पडितोको चाहिये तो यह था कि ये स्वयं युद्धक्षेत्रमे उतरकर गोलावारी करते हुए आगे वढते, अपने युद्धके हथकण्डे दिखलाते, अपनी पदवियोको सार्थक बनाते और दूसरोको प्रोत्साहन देते हुए आगे बढाते । परन्तु ये खुद ही दब्बू बन गये और प्रहारोके सामने आँखें बन्दकर लेने तकका उपदेश देने बैठ गए । यह इनके रोगकी कैसी विचित्र अवस्था है !! जब फौजके जनरल ( सेनापतियो ) की ऐसी दशा हो तब फौज यदि हथि - यार डाल बैठे और अपनी पराजयका अनुभव करने लगे तो इसमे आश्चर्यकी कुछ भी बात नही है । इनकी इस परिणतिके ६२८
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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