SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 610
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ A ६०४ युगवीर निबन्धावली नही । मै सेठ साहवसे पूछता हूँ कि ( 1 ) एक आचार्य सीताको रावणकी पुत्री और दूसरे जनककी पुत्री बतलाते हैं, (२) जम्बू स्वामीका समाधि स्थान एक मथुरामे, दूसरे विपुलाचल पर्वत पर और तीसरे कोटिकपुरमे ठहराते हैं, (३) भद्रबाहुकके समाधिस्थानको एक श्रवणबेलगोलके चन्द्रगिरि पर्वतपर, दूसरे उज्जयिनीमे बतलाते हैं, (४) श्रावकोके अष्टमूल गुणोके निरूपण करनेमे एक आचार्य कुछ कहते हैं, दूसरे कुछ और तीसरे चौथे कुछ और ही, (५) कुछ आचार्य छठी प्रतिमाको 'दिवामैथुन - त्याग' बतलाते हैं और कुछ ' रात्रिभोजन - विरति, (६) कोई गुरु रात्रि भोजनविरतिको छठा अणुव्रत करार देते हैं और कोई नही, (७) गुणव्रत और शिक्षाव्रतके कथनोमे भी आचार्यों मे परस्पर मतभेद हैं', (८) कितने ही आचार्य ब्रह्माणुव्रतीके लिए वेश्याका निषेध करते हैं और कुछ सोमदेव - जैसे आचार्य उसका विधान करते है । इसी तरहके और भी सैकडो मतभेद हैं, इनमेसे प्रत्येक विपयमें कौनसे गुरुकी बात मानी जाय और कौनसे की नही ? जिसकी बात न मानी जाय उसकी आज्ञाका भङ्ग करनेका दोष लगेगा या नही ? और तब क्या उक्त 'गुरुणामनुममनं' के सिद्धान्तमे वाघा नही आवेगी ? क्या आप उस गुरुको गुरुत्वसे ही च्युत कर देंगे ? परीक्षा, जाँच-पड़ताल और युक्तिवादको छोडकर, आपके पास ऐसी कौनसी गारटी है जिससे एक गुरुकी बात मानी जाय और दूसरेकी नही ? कृपाकर यह तो बतलाइये कि जितने आचार्यों, भट्टारको आदि गुरुओंके वचन ( शास्त्र ) १. देखी लेखकके शासनभेद - सम्बन्धी लेख, जैनहितैषी भाग १४ अक १, २, ३, ७, ८, ९ तथा 'जैनाचार्यों का शासनभेद' | २ वधू- वित्तस्त्रियौ मुक्त्वा सर्वत्रान्यत्र तज्जने । मातास्त्र सातनूजेति मतिर्ब्रह्म गृहाश्रमे ॥ ( यशस्तिलक )
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy