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________________ ६०० युगवीर-निवन्धावली डालनेका साहस किया है। स्वामी समन्तभद्रने तो भगवान् महावीरस्वामीकी भी परीक्षा करडाली है और यहाँ तक लिखा है कि देवोका आगमन, आकाशमे गमन और छत्र-चवरादि विभूतियोकी वजहसे मैं आपको महान्-पूज्य नही मानता, ये बातें तो मायावियो-इन्द्रजालियोमे भी पाई जाती हैं। क्या सेठ साहव स्वामी समन्तभद्र-जैसे महान् आचार्योपर इस प्रकारका दोप लगाने और उन्हे अजैन ठहरानेके लिए तैयार हैं। यदि नहीं तो आपको यह मानना होगा कि नीचे दर्जेवाला भी ऊंचे दर्जेवालेकी परीक्षा और उसके गुण-दोपोकी जाँच, अपनी शक्तिके अनुसार, कर सकता है। और इसलिए श्रावकोका मुनियो तथा आचार्योंके कुछ कृत्योकी समालोचना करना, उनके गुण-दोष बतलाना, अधिकारकी दृष्टिसे कोई अनुचित कार्य नही है । इसके सिवाय मै सेठ साहबसे पूछता हूँ कि क्या साधु-सम्प्रदायमे कपट-वेषधारी, द्रव्यलिंगी, शिथिलाचारी, अल्पज्ञानी और अनेक प्रकारके दोषोको लगानेवाले साधु तथा आचार्य नही हुए हैं ? क्या आचार्योमे मठाधिपति ( गद्दीनशीन ) भट्टारक लोग शामिल नहीं है ? क्या ऐसे आचार्योके बनाये-बनवाये हुए सैकडो ग्रन्थ जैन-समाजमे प्रचलित नही है ? क्या इन ग्रन्थोमे श्रमणाभास भट्टारकोने अपनेको परम आचार्य और मुनीन्द्र तक नहीं लिखा ? क्या बहुतसे ग्रन्थोमे अज्ञान, कषाय और भूल आदिके कारण पीछेसे कुछ मिलावट नही हुई ? क्या जिनसेन-त्रिवर्णाचार और कुन्दकुन्दश्रावकाचार जैसे कुछ ग्रन्थ बड़े आचार्योक नामसे जाली १. देवागमनभोयान-चामरादि-विभूतयः । मायाविष्वपि दृश्यन्ते नातस्त्वमसि नो महान् ।।-आप्तमीमासा २. ऐसे ही साधुओंको लक्ष्य करके 'सज्जनचित्तवल्लभ' आदि ग्रन्थोंमे उनकी कडी आलोचना की गई है।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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