SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 605
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नया सन्देशः उदार उपदेशोसे ही जैनधर्म अबतक गौरवशाली बना हुआ है। परन्तु हमारे पाठकोको आज यह जानकर आश्चर्य होगा कि शोलापुरके सेठ रावजी सखाराम दोशीने जैनसिद्धान्त-विद्यालय मोरेनाके वार्षिकोत्सव पर सभापतिकी हैसियतसे भाषण देते हुए, उक्त शिक्षासे प्रतिकूल, जैनसमाजको हालमे एक नया सन्देश सुनाया है, और वह सक्षेपमें यह है कि जो विद्वान् लोग जैनग्रंथोकी समालोचना करते हैं-उनके गुण-दोषोको प्रकट करते हैं-वे जैनी नही है । इस सम्बन्धमे आपके कुछ खास वाक्य इस प्रकार हैं - ___"अब थोड़े दिनोंसे कुछ पढ़े-लिखे लोगोंमें एक तरहका भ्रम होकर वे परम पूज्य आचार्योंके ग्रन्थोंकी समालोचना कर रहे हैं। जो जैनी हैं वे आचार्योकी समालोचना करते है, यह वाक्य कहनेमें विपरीतता दिखाई देती है। आचार्योंकी समालोचना करनेवाला जैनी कैसे कहला सकता है ?" समझमे नही आता कि जैनी होने और आचार्योंकी समालोचना करनेमे परस्पर क्या विपरीतता है। क्या सेठ साहबका इससे यह अभिप्राय है कि, जो स्वय आचार्य नहो, वह आचार्यके गुण-दोषोका विचार नही कर सकता अथवा उसे वैसा करनेका अधिकार नही ? यदि ऐसा है तो सेठ साहबको यह भी कहना होगा कि जो आप्त नहीं है, अनीश्वर है उसे आप्त भगवान्कीईश्वर-परमात्माकी-मीमासा और परीक्षा करनेका भी कोई अधिकार नही है, न वह कर सकता है। और तब आपको स्वामी समन्तभद्र और विद्यानन्दादि जैसे महान् आचार्योंको भी कलङ्कित करना होगा और उन्हे अजैन ठहराना पडेगा, क्योकि स्वय आप्त, ईश्वर या परमात्माके पदपर प्रतिष्ठित न होते हुए भी उन्होने आप्त-परमात्माकी मीमासा और परीक्षा तक कर
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy