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________________ २ युगवीर निबन्धावली पढने के लिये पारितोषिकादिकके रूपमें दिया जाना चाहिये, जिससे उन्हे समाजकी पूर्वगति-विधियो एव स्पन्दनोका कितना ही परिज्ञान होकर कर्त्तव्यका समुचित भान हो सके, और वे खोजने, परखने तथा लिखने आदिकी कलामें भी विशेष नैपुण्य प्राप्त कर सकें । अन्तमें हम डा० ज्योतिप्रसादजी जैन, एम० ए०, एल-एल० वी०, पी-एच० डी० लखनऊको हार्दिक धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने निवन्धावलीके इस खण्ड के लिए अपना महत्वपूर्ण 'प्राक्कथन' लिख भेजकर सस्थाको आभारी बनाया है । किन्तु उनके 'पेशेवर पडित', 'धनी सेठोंके आश्रित, उनके मुखापेक्षी अथवा उनके द्वारा स्थापित, सचालित या पोपित संस्थानो, लगठनो आदिमे चाकरी करने वाले जैन पंडितो' जैसे अप्रासंगिक एव अनावश्यक आक्षेपोंसे हम सहमत नहीं है । हम तो समझते है कि चाहे पेशेवर' हो और चाहे 'अपेशेवर', जो कर्त्तव्यनिष्ठ है वह प्रशसनीय है | हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी २४ अगस्त १९६७ दरवारीलाल जैन कोठिया ( न्यायाचार्य एम० ए० ) मंत्री 'वीरसेवामन्दिर - ट्रस्ट'
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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