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________________ प्रकाशकीय आचार्य श्रीजुगलकिशोरजी मुख्तार 'युगवीर के विभिन्न निवन्धोकी सग्रह-कृति युगवीर-निबन्धावलीका प्रथम खण्ड सन् १९६३ मे प्रकाशित हुआ था और अब लगभग पांत्र वर्ष वाद उनका यह द्वितीय खण्ड पाठकोके हायोमे देते हुए हमें वडी प्रसन्नता होती है। इसमें भी प्रथम खण्डकी तरह इतस्तत विखरे हुए दूसरे सामाजिक तथा धार्मिक निवन्धोका संग्रह है। पहला खण्ड विविध विषयके ४१ महत्वपूर्ण मौलिक निवन्धोको लिये हुए है तो यह दूसरा खण्ड ६५ निवन्धोको आत्मसात् किये हुए है, जिन्हें १ उत्तरात्मक, २ समालोचनात्मक, ३ स्मृति-परिचयात्मक, ४ विनोद-शिक्षात्मक और ५ प्रकीर्णक ऐसे पांच विभागोमें विभक्त किया गया है और उन्हे अपने-अपने विभागानुसार काल-क्रमसे रखा गया है। इसका विशेष परिचय साथमे दी गई निवन्ध-सूचीसे सहज ही प्राप्त हो सकेगा। इस खण्डकी पृष्ठसख्या पहले खण्डसे दुगुनी हो गई है, फिर भी मूल्य दुगना न किया जाकर लागतमान रखा गया है। ___ मुख्तारीके लेख-निवन्धोको जिन्होंने भी कभी पढ़ा-सुना है उन्हे मालूम है कि वे कितने खोजपूर्ण उपयोगी और ज्ञानवर्धक होते है, इसे बतलानेकी आवश्यकता नही है। विज्ञ पाठक यह भी जानते हैं कि इन निवन्धोने समय-समयपर समाजमें किन-किन सुधारोको जन्म दिया है और क्या कुछ चेतना उत्पन्न की है। 'विवाह-क्षेत्रप्रकाश' नामका सबसे वडा निवन्ध तो पुस्तकके रूपमें छपकर कभीका नि शेप हो चुका है और अब मिलता नही। इससे सभी पॉठक एक ही स्थानपर उपलब्ध इन निवन्धोंसे अव अच्छा लाभ उठा सकेंगे। इस खण्डके अधिकाश निवन्धोंके लिखनेमें कितना भारी परिश्रम और कितना अधिक शोध-खोज-कार्य किया गया है यह उन्हे पढनेसे ही जाना जा सकता है । __निवन्धावलीका यह खण्ड भी स्कूलो, कालिजो तथा विद्यालयो आदिको लायबेरियोमें रखे जानेके योग्य है और उच्च कक्षाओंके विद्यार्थियोको
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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