SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -i lme - विवाह-क्षेत्र-प्रकाश (३) [देवकीकी कथासे ] "यह सिद्ध करना चाहा है कि विवाहमे जाति-गोत्रका पचडा व्यर्थ है । यदि कामवासनाकी हवस पूरी करनेके लिये अन्य गोत्रकी कन्या न मिले तो फिर अपनी ही बहिन, भतीजी आदिसे विवाह कर लेनेमे कोई हानि नही है।" (पृ० ३७ ) (४) "जराकी कथासे आप सिद्ध करना चाहते हैं कि भगी, चमार आदि नीच' मनुष्य व शूद्रोके साथ ही विवाह कर लेनेमे कोई हानि नही है।" (पृ० ३८) (५) "बाबू साहबको तो लोगोको भ्रममे डालकर और सबको वेश्यागमनका खुल्लम-खुल्ला उपदेश देकर अपनी हवस पूरी करना है उन्हे इतनी लम्बी समझसे क्या काम ।" (पृ० ४५-४६) (६) "बाबू साहबने जो चारुदत्तकी कथासे वेश्या तकको घरमें डाल लेनेकी प्रवृत्ति चलाना चाहा है, यह प्रवृत्ति सर्वथा धर्म और लोकविरुद्ध है। ऐसी प्रवृत्तिसे पवित्र जैनधर्मको कलङ्क लग जायगा।" (पृ० ४६) (७) "लाला जौहरीमलजी जैन सर्राफ सरीखे कुछ मनचले लोगोने · बाबू जुगलकिशोरजीके लिखे अनुसार "गृहस्थके लिये स्त्रीकी जरूरत होनेके कारण चाहे जिसकी कन्या ले लेनी चाहिये" इसी उद्देश्यको उचित समझा" ( भूमिका) अब देखना चाहिये कि इन सब वाक्योके द्वारा पुस्तकके प्रतिपाद्य विषय, आशय, उद्देश्य और लेखकके तज्जन्य विचारो आदिके सम्बन्धमे जो घोषणा की गई है वह कहाँ तक सत्य है-~दोनो लेखोपरसे उसकी कोई उपलब्धि होती है या कि नही-- और यह तभी बन सकता है अथवा इस विषयका अच्छा अनुभव पाठकोको तभी हो सकता है जबकि उनके सामने प्रत्येक लेखका
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy