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________________ ५६२ युगवीर-निवन्धावली आदि की प्रतियोमे पाया जाता है और जो इस टीकाग्रन्थके रचनेकी प्रतिज्ञाको लिये हुए है - "तित्थवोच्छेदभयेणुवइट्टगाहाणं अवगाहियसयतायाहुउत्थाण सचुण्णिसुत्ताण विवरणं कस्सामो। सपहि गुणहरभडारएण" ____ यदि दूसरी उपलब्ध प्रतियोसे ही मुकाबला कर लिया होता तो इस प्रकारकी त्रुटि न रहती । (ग) पृष्ठ १४ पर मूलका पाठ इस प्रकार दिया है - "पुण्णकम्मवंधत्थीणं देसव्वयाणं मंगलकरणं जुत्तं ण गुणीणं । कम्मक्खयकखुवानमिदि ण वोत्तु जुत्तं पुण्णबंधहउत्तं पडि विसेसाभावादो मंगलस्सेव सरागसंजमस्स विपरिच्चागप्पसंगादो। ___ण च संजमप्पसंग-भावेण णिन्बुइ-गमणाभाव-प्पसंगादो सरागसंजमो गुणस्लेडि-णिजराए कारणं तेण बंधादो मोक्खो असंखेज-गुणो त्ति सरागसंजमे मुणीणं वट्टणं जुत्तमिदि ण पञ्चवट्ठाणं कायन्वं| अरहंत णमोकारो संपहियवंधादो असखेजगुण-कम्म-क्खयकारओ त्ति तत्थ वि मुणीणं पवुत्तिप्पसंगादो। उत्तं च " __इसके प्रथम पैरेग्राफमे 'गुणीण' की जगह 'मुणीण' पाठका संशोधन होना चाहिये था । पूर्वापर सम्बन्धको देखते हुए 'मुणीण' पाठ ही ठीक बैठता है--अगले पैरेग्राफमे भी दो स्थानो 'पर 'मुणीण' पद ही प्रयुक्त हुआ है। 'परिच्वाग' से पहले "वि' शब्द को अलग रखना चाहिये था, वह वहाँ 'अपि' का वाचक है, उसे 'परिच्चाग' का अग बनाकर और 'विपरित्याग' रूपसे छायानुवाद करके जो सशोधन किया गया है वह ठीक नहीं है। इस गलत सशोधन अथवा शुद्धको अशुद्ध बनानेके परिणामस्वरूप ही 'मगलस्सेव' का छायानुवाद 'मंगलस्येव' की जहग
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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