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________________ द्रव्य-सग्रहका अग्रेजी सस्करण ५४५ छठा भाग रायसाहब बाबू प्यारेलालजी, वकील चीफकोर्ट, देहलीने अपने पुत्र आदीश्वरलालके विवाहोत्सवकी खुशीमे प्रदान किया है और दूसरा छठा भाग करनालके रईस लाला मुन्शीलालजीकी धर्मपत्नी, अर्थात् देहरादूनके सरकारी खजानची ला० अजित प्रसादकी धर्मपत्नी श्रीमती चमेली देवीकी माताकी ओरसे दिया गया है। इन उदार व्यक्तियोकी तरफमे यह ग्रन्थ ओरियटल लायबेरियो और उन विद्वानोको भेटस्वरूप दिया जाता है जो जैनफिलासोफी और जैन-साहित्यसे विशेष अनुराग रखते हैं, ऐसा इस ग्रथके शुरूमे प्रकाशक-द्वारा सूचित किया गया है। इस प्रकार ग्रन्थका साधारण परिचय देने अथवा सामान्यालोचनाके बाद अब कुछ विशेष समालोचना की जाती है, जिससे इस ग्रथमालाके द्वारा भविष्यमे जो ग्रथ निकलें उनके प्रकाशित करनेमे विशेष सावधानी रक्खी जाय और इस ग्रथमे जो खासखास भूलें हुई हैं उनका निराकरण और सुधार हो सके -- १ ग्रथके अन्तमे एक पेजका शुद्धिपत्र लगा हुआ है। इसमे विन्दु-विसर्ग और मात्रा तककी जिन अशुद्धियोको शुद्ध किया गया है उनके देखनेसे मालूम होता है कि ग्रथका सशोधन बडी सूक्ष्म-दृष्टिके साथ हुआ है और इसलिये उसमे कोई अशुद्धि नही रहनी चाहिये । परन्तु तो भी सस्कृत प्राकृतके पाठोमे उस प्रकारकी अनेक अशुद्धियाँ पाई जाती हैं। अगरेजीमे सूत्रकृताङ्गको 'सूत्रक्रिताङ्ग', विष्णुवर्धनको 'विष्नुवर्धन', सज्ञाको 'सङ्गा', भवनवासीको 'भुवनवासी', अनुप्रवेशको 'अनुप्रबेश', और आभ्यन्तरको 'आव्यतर' गलत लिखा है। इस प्रकारकी साधारण अशुद्धियोको छोडकर कुछ मोटी अशुद्धियाँ भी देखनेमे आती है , जैसे पृष्ठ २ पर प्रमेय-रत्नमालाके स्थानमे 'परीक्षा १. देखो, पृ० न० XII, XXVIII, XL, LIV, 57, 87
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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