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________________ ___३४ हीराचन्दजी वोहराका नम्र निवेदन और कुछ शकाएँ ५२९ विवक्षित ही नही है । शका ४ के समाधानानुसार जब द्रव्यलिंगी मुनि ऊँचे दर्जेकी क्रियाएं करता हुआ भी शुद्धत्वके निकट नही तब वह मुक्तिका पात्र कैसे हो सकता है ? मुक्तिका पात्र सम्यग्दृष्टि होता है, मिथ्यादृष्टि नही। मेरे लेखानुसार द्रव्यलिंगी मुनिको मुक्तिकी प्राप्ति हो जानी चाहिये थी, ऐसा समझना बुद्धिका कोरा विपर्यास है, क्योकि मेरे लेखमे सम्यग्दृष्टिके ही शुभ भाव विवक्षित है-मिथ्यादृष्टि या द्रव्यलिगी मुनिके नही । शकाकारने धर्मका जो लक्षण स्वामी समन्तभद्रकृत बतलाया है वह भी भ्रमपूर्ण है। स्वामी समन्तभद्रने धर्मका यह लक्षण नही किया कि 'जो उत्तम अविनाशीसुखको प्राप्त करावे वही धर्म है।' उन्होंने तो 'सदृष्टिज्ञानवृत्तानि धर्म धर्मेश्वरा विदु' इस वाक्यके द्वारा सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान और सम्यक् चारित्रको धर्मका लक्षण प्रतिपादन किया है-उत्तम अविनाशी सुखको प्राप्त करना तो उस धर्मका एक फलविशेप है, लक्षण नही। फल, उसका अभ्युदय-सुख भी है, जो 'निःश्रेयसमभ्युदयं' इत्यादि कारिका ( १३० ) में सूचित किया गया है, जो उत्तम होते हुए भी अविनाशी नही होता और जिसका स्वरूप 'पूजार्थाऽऽज्ञ श्वर्यबल' इत्यादि कारिका ( १३५ ) मे दिया हुआ है, जिसे मैंने अपने लेखमे उद्धृत भी किया था, फिर भी ऐसी शकाका किया जाना कोई अर्थ नही रखता। शंका ११-धर्म मोक्षमार्ग है या संसारमार्ग ? यदि शुभभाव भी मोक्षमार्ग है तो क्या मोक्षमार्ग दो हैं ? समाधान-धर्म मोक्षमार्ग है या ससारमार्ग, यह धर्मकी जाति अथवा प्रकृतिकी स्थितिपर अवलम्बित है। सामान्यतः धर्ममात्रको सर्वथा मोक्षमार्ग या संसारमार्ग नही कहा जा सकता।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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