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________________ ४६ युगवीर - निबन्धावली 'प्रत्यन्तो म्लेच्छ मंडलम्' ॥९५२॥ ( अभिधानचिंतामणिः ) वामन शिवराम आप्टे एम० ए० कृत संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरीमे भी लिखा है कि 'प्रत्यन्त' खास तौरपर उस देशको कहते हैं जिसमे अनार्य या म्लेच्छ लोग रहते हो । यथा 'प्रत्यन्त: ' A bordering country aspecially a country occupied by barbarins or malechchhas. इन सब प्रमाणके सिवाय खुद भगवज्जिनसेनाचार्यने आदिपुराण मे अन्य स्थलोपर भी 'प्रत्यन्त' शब्दको म्लेच्छ देशोंके लिये व्यवहृत किया है । जैसा कि निम्नलिखित श्लोकोसे प्रगट है " इत्थं पुण्योदयाच्चक्री बलात्प्रत्यन्तपालकान् । विजिग्ये दण्डमात्रेण जयः पुण्याहते कुतः ॥ " ( ३१ - १५५ ) "हेला निर्जितखेचराद्रिरधिराट् प्रत्यन्तपालान् जयन् । सेनान्या विजयी व्यजेष्ट निखिलां षट्खण्डभूषां महीम् ॥ ( ३२-१९८ ) "कुक्षिवासशतान्यस्य सप्तैवोक्तानि कोविदैः । प्रत्यन्तवासिनो यत्र न्यवात्सुः कृतसंश्रयाः || ” ( ३७-७० ) इस प्रकार अनेक प्रमाणोसे यह भली प्रकार सिद्ध है कि 'प्रत्यन्त' शब्दका अर्थ म्लेच्छ देश है । 'प्रत्यन्त' शब्दके साथ 'वासिन्' शब्द लगा हुआ है, जिसका अर्थ है 'निवासी' । दोनोका एक समास होकर सप्तमीके बहुवचनमे 'प्रत्यन्तवासिषु' ऐसा रूप बना है, जिसका अर्थ होता है ' म्लेच्छ देशो के निवासियोमें' और इसलिये पूरे वाक्यका यह अर्थ हुआ कि 'जैनधर्म आर्यदेशसे च्युत होकर मलेच्छ देशोंके निवासियोमे रहेगा अर्थात् ( पचम कालमे ) जैनधर्म प्राय आर्यदेशको छोड़कर प्रान्त देशो में
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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