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________________ ४८६ युगवीर-निवन्धावली स्वामी समन्तभद्र, जिनसेन और अकलकदेव - जैसे महान् आचार्यों के कुछ वाक्योको भी उद्धृत किया गया था, जिनसे जिनशासनका वहुत कुछ मूल स्वरूप सामने आ जाता है, और फिर फलितार्थरूपमें विज्ञ पाठकोसे यह निवेदन किया गया था कि "स्वामी समन्तभद्र, सिद्धसेन और अलकदेव जैसे महान जैनाचार्योंके उपर्युक्त वाक्योमे जिनशासनकी विशेषताओ या उसके सविशेषरूपका ही पता नही चलता, बल्कि उस शासनका बहुत कुछ मूलस्वरूप मूर्तिमान होकर सामने आ जाता है । परन्तु इस स्वरूप कथनमे कही भी शुद्धात्माको जिनशासन नही बतलाया गया, यह देखकर यदि कोई सज्जन उक्त महान् आचार्योंको, जो कि जिनशासन के स्तम्भस्वरूप माने जाते हैं, 'लोकिकजन' या 'अन्यमती' कहने लगे और यह भी कहने लगे कि 'उन्होने जिनशासनको जाना या समझा तक नही' तो विज्ञ पाठक उसे क्या कहेगे, किन शब्दोसे पुकारेंगे और उसके ज्ञानकी कितनी सराहना करेंगे ( इत्यादि ) ।" कानजी स्वामीका उक्त प्रवचन- लेख जाने-अनजाने ऐसे महान् आचार्योंके प्रति वैसे शब्दोके सकेतको लिये हुए है, जो मुझे बहुत ही असह्य जान पड़े और इसलिए अपने पास समय न होते हुए भी मुझे उक्त लेख लिखनेके लिए विवश होना पडा, जिसकी सूचना भी प्रथम लेखमे निम्न शब्दो द्वारा की जा चुकी है "जिनशासन के रूपविषय मे जो कुछ कहा गया है वह बहुत ही विचित्र तथा अविचारितरम्य जान पडता है । सारा प्रवचन आध्यात्मिक एकान्तकी ओर ढला हुआ है, प्रायः एकान्त मिथ्यात्वको पुष्ट करता है और जिनशासनके स्वरूप - विषयमें लोगोको गुमराह करनेवाला है । इसके सिवा जिनशासनके कुछ महान् स्तम्भोको }
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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