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________________ हीराचन्दजी वोहराका नम्र निवेदन और कुछ शकाएँ ४८५ प्रमाणोकी भारी चर्चाओ एव प्ररूपणाओको आत्मसात् किये अथवा अपने अक ( गोद ) मे लिये हुए स्थित है। साथ ही मोक्षमार्गकी देशना करता हुआ रत्नपयादि धर्मविधानो, कुमार्गमथनो और कर्मप्रकृतियोके कथनोपकथनसे भरपूर है। सक्षेपमे जिनशासन जिनवाणीका रूप है, जिसके द्वादश अग और चौदह पूर्व अपार विस्तारको लिए हुए प्रसिद्ध हैं।' इस कयनकी पुष्टिमै समयसारकी जो गाथाएं उद्धृत की जा चुकी है उनके नम्बर है-४६, ४८, ५६, ५६, ६०, ६७, ७०, १०७, १४१, १२१, १६२, १६३, १६१, १६८, २५१, २६२, २७३, ३५३, ४१४ । इन गाथाओको उद्धृत करनेके बाद प्रथम लेखमे लिखा था - "इन सब उद्धरणोसे तथा श्रीकुन्दकुन्दाचार्यने अपने प्रवचनसारमे जिनशासनके साररूपमे जिन-जिन बातोका उल्लेख अथवा ससूचन किया है उन सबको देखनेसे यह बात विल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि 'एकमात्र शुद्धात्मा जिनशासन नही है। जिनशासन निश्चय और व्यवहार दोनो नयो तथा उपनयोके कथनको साथ-साथ लिये हुए ज्ञान, ज्ञेय और चारित्ररूप सारे अर्थसमूहको उसकी सव अवस्थाओ-सहित अपना विषय किये हुए हैं।" साथ ही यह भी बतलाया था कि 'यदि शुद्ध आत्माको ही जिनशासन कहा जाय तो शुद्धात्माके जो पांच विशेषण अवद्धस्पृष्ट, अनन्य, नियत, अविशेप और असयुक्त कहे जाते हैं वे जिनशासनको भी प्राप्त होगे, और फिर यह स्पष्ट किया गया था कि जिनशासन उक्त विशेपणोंके रूपमे परिलक्षित नहीं होता। वे उसके साथ घटित नहीं होते अथवा सगत नही बैठते और इसलिए दोनोकी एकता बन नही सकती। इस स्पष्टीकरणमे
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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