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________________ ४५४ युगवीर-निवन्धावली 'मिथ्यादर्शन-समूहमय' 'अमतसार' जैसे जिन विशेषणोका प्रयोग सन्मतिसूत्रकी अन्तिम गाथामे किया है उनका उल्लेख ऊपर आ चुका है, यहाँ उक्त सूत्रकी पहली गाथाको और उद्धृत किया जाता है जिसमे जिनशासनके दूसरे कई महत्वके विशेषणोका उल्लेख है .सिद्धं सिद्धत्थाणं ठाणमणोवमसुहं उवगयाणं । कुसमय-विसासणं सासणं जिणाणं भवजिणाणं ॥ इसमे भवको जीतनेवाले जिनो-अर्हन्तोके शासनको चार विशेषणोसे विशिष्ट बतलाया है-१ सिद्ध ( अकल्पित एवं । प्रतिष्ठित ), २ सिद्धार्थोका स्थान (प्रमाणसिद्ध पदार्थोंका प्रतिपादक ), ३ शरणागतोके लिये अनुपम सुखस्वरूप ( मोक्षसुख) तककी प्राप्ति करानेवाला ४ कुसमयोके शासनका निवारक ( सर्वथा एकान्तवादका आश्रय लेकर शासनारूढ बने हुए सव मिथ्यादर्शनोके गर्वको चूर-चूर करनेकी शवितसे सम्पन्न )। स्वामी समन्तभद्र, सिद्धसेन और अकलकदेव-जैसे महान् जैनाचार्योंके उपर्युक्त वाक्योसे जिनशासनकी विशेषताओ या उसके सविशेषरूपका ही पता नही चलता, बल्कि उस शासनका बहुत कुछ मूलस्वरूप मूर्तिमान होकर सामने आ जाता है । परन्तु इस स्वरूप-कथनमे कही भी शुद्धात्माको जिनशासन नही बतलाया गया, यह देखकर यदि कोई सज्जन उक्त महान् आचार्योको, जो कि जिनशासनके स्तम्भस्वरूप माने जाते हैं, 'लौकिकजन' या 'अन्यमती' कहने लगे और यह भी कहने लगे कि 'उन्होंने जिनशासनको जाना या समझा तक नही' तो विज्ञ पाठक उसे क्या कहेगे, किन शब्दोसे पुकारेंगे और उसके ज्ञानकी कितनी सराहना करेगे यह मैं नही जानता, विज्ञ पाठक A K ALAM दARAM
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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