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________________ कानजी स्वामी और जिनशासन ४५३ साथ ही यह भी प्रतिपादन किया है कि जिनेन्द्रका 'स्यात् शब्दपुरस्सर-कथनको लिये हुए जो स्यावाद है-अनेकान्तात्मक प्रवचन ( शासन) है-वह दृष्ट (प्रत्यक्ष) और इष्ट ( आगमादिक ) का अविरोधक होनेसे अनवद्य ( निर्दोप) है, जब कि दूसरा 'स्यात्' शब्दपूर्वक कथनसे रहित जो सर्वथा एकान्तवाद है वह निर्दोप प्रवचन ( शासन ) नही है, क्योकि दृष्ट और इष्ट दोनोके विरोधको लिये हुए है ( १३८ )। अकलकदेवने तो स्याद्वादको जिनशासनका अमोघलक्षण बतलाया है, जैसाकि उनके निम्न सुप्रसिद्ध वाक्यसे प्रकट है-- श्रीमत्परमगम्भीर स्याद्वादाऽमोघलांछनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ।। स्वामी समन्तभद्रने अपने 'युक्त्यनुशासन' मे, श्रीवीरजिनके शासनको, एकाधिपतित्वरूप लक्ष्मीका स्वामी होनेकी शक्तिसे सम्पन्न बतलाते हुए, जिन बिशेषोकी विशिष्टतासे अद्वितीय प्रतिपादित किया है वे निम्न कारिकासे भली प्रकार जाने जाते हैं दया-दम-त्याग-समाधिनिष्ठं नय-प्रमाण-प्रकृताऽऽअसार्थ । अधृष्यमन्यैरखिलैः प्रवादैजिन ! त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥ इसमें बताया है कि वीरजिनका शासन दया, दम, त्याग } और समाधिकी निष्ठा-तत्परताको .लिये हुए हैं, नयो तथा प्रमाणोके द्वारा वस्तुतत्त्वको बिल्कुल स्पष्ट ( सुनिश्चित.) करनेवाला है और अनेकान्तवादसे भिन्न दूसरे सभी प्रवादो (प्रकल्पित एकान्तवादो ) से अवाध्य है, ( यही सब उसकी विशेषता है) और इसीलिये वह अद्वितीय है-सर्वाधिनायक होनेकी क्षमता रखता है। और श्रीसिद्धसेनाचार्यने जिन-प्रवचन ( शासन) के लिए - - - - -
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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