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________________ ४४४ युगवीर-निबन्धावली शुद्धात्मदर्शी और जिनशासन प्रस्तुत गाथामे आत्माको अबद्धस्पृष्टादि-रूपसे देखनेवाले शुद्धात्मदर्शीको सम्पूर्ण जिनशासनका देखनेवाला बतलाया है। इसीसे प्रथमादि चार शकाओका सम्बन्ध है। पहली शंका सारे जिनशासनको देखनेके प्रकार तरीके अथवा ढग (पद्धति ) आदिसे सम्बन्ध रखती है, दूसरीमे उस द्रष्टा-द्वारा देखे जानेवाले गिनशासनका रूप पूछा गया है, तीसरीमे उस रूपविशिष्ट जिनशासनका कुछ महान् आचार्यो-द्वारा प्रतिपादित अथवा ससूचित जिनशासनके साथ भेद-अभेदका प्रश्न है, और चौथीमे भेद न होनेकी हालतमे यह सवाल किया गया है कि तब इन आचार्यो-द्वारा प्रतिपादित एव ससूचित जिनशासनके साथ उसकी सगति कैसे बैठती है ? इनमेसे पहली, तीसरी और चौथी इन तीन शकाओके विषयमे प्रवचनलेख प्राय मौन है। उसमें बारबार इस बातको तो अनेक प्रकारसे दोहराया गया है कि जो शुद्धात्माको देखता-जानता है वह समस्त जिनशासनको देखता-जानता है अथवा उसने उसे देख-जान लिया, परन्तु उन विशेषणोके रूपमें शुद्धात्माको देखने-जानने मात्र सारे जिनशासनको कैसे देखता-जानता है या देखने-जाननेमे समर्थ होता है अथवा किस प्रकारसे उसने उसे देख-जान लिया है, इसका कही भी कोई स्पष्टीकरण नही है और न भेदाऽभेदकी बातको उठाकर उसके विषयमें ही कुछ कहा गया है, सिर्फ दूसरी शकाके विषयभूत जिनशासनके रूप-विपयको लेकर उसीके सम्बन्धमे जो कुछ कहना था वह कहा गया है। अव आगे उसीपर विचार किया जाता है। श्रीकानजीस्वामी महाराजका कहना है कि 'जो शुद्ध आत्मा
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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