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________________ समवसरणमें शूद्रोंका प्रवेश ४२१ १००) रु० के पारितोपिककी घोषणा कर रहे हैं और उन रुपयोको बाबू राजकृष्ण प्रेमचन्दजी दरियागज कोठी न० २३ देहलीके पास जमा बतलाते हैं। चैलेज-लेखमें मेरी 'जिनपूजाधिकारमीमामा' पुस्तकका एक अश उद्धृत किया गया है, जो निम्न प्रकार है "श्रीजिनसेनाचार्यकृत हरिवंशपुराणके द्वितीय सर्गमे, महावीरस्वामीके समवसरणका वर्णन करते हुए लिखा है - समवसरणमें जब श्रीमहावीरस्वामीने मुनिधर्म और श्रावकधर्मका उपदेश दिया तो उसको सुनकर बहुतसे ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य लोग मुनि होगये और चारो वर्णोंके स्त्री-पुरुपोने अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रोने श्रावकके बारह व्रत धारण किये। इतना ही नही किन्तु उनकी पवित्र वाणीका यहाँ तक प्रभाव पड़ा कि कुछ तिर्यञ्चोने भी श्रावकके व्रत धारण किये । इससे, पूजा-वन्दना और धर्मश्रवणके लिये शूद्रोका समवसरणमें जाना प्रकट है।") ___ इस अशको 'समोशरण' जैसे कुछ शब्द-परिवर्तनके साथ उद्धृत करनेके बाद अध्यापकजी लिखते हैं-"इस लेखको आप सस्कृत हरिवंशपुराणके प्रमाणो द्वारा सत्य सिद्ध करके दिखलावे । आपको इसकी असलियत स्वय मालूम हो जावेगी।" __ मेरी जिनपूजाधिकारमीमांसा पुस्तक आजसे कोई ३५ वर्प पहले अप्रैल सन् १६१३ मे प्रकाशित हुई थी। उस वक्त तक जिनसेनाचार्यके हरिवशपुराणकी पं० दौलतरामजी कृत भाषा वचनिका ही लाहौरसे ( सन् १९१० में) प्रकाशमे आई थी और वही अपने सामने थी। उसमें लिखा था "जिस समय जिनराजने व्याख्यान किया उस समय
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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