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________________ ३९० युगवीर-निवन्धावली त्यागे जानेकी बात दूसरी है, उस दृष्टिसे अच्छेसे अच्छे पदार्थका खाना भी छोडा जा सकता है। शेष ऊपरके सात दर्जावाले श्रावकोके लिये वह कच्ची दशामे अभक्ष्य है, किन्तु अग्निपक्व अथवा अन्य प्रकारसे प्रासुक होनेकी अवस्थामे अभक्ष्य नही है। इसके सिवाय 'मूलाचार' नामक अति प्राचीन मान्य ग्रन्थ और उसकी 'आचारवृत्ति' टीकामे मुनियोके लिये भक्ष्याऽभक्ष्यकी व्यवस्था बतलाते हुए जो दो गाथाएँ दी है वे टीकासहित इस प्रकार हैं :फल-कंद-सूल-बीयं अणग्गिपक्कं तु आमयं किंचि । णच्चा असणीयं णवि य पडिच्छिति ते धीरा ॥ ६-५९ ॥ ___टीका-फलानि कन्दमूलानि बीजानि अग्निपक्वानि न । भवन्ति यानि अन्यदपि आमकं यत्किचिदनशनीय ज्ञात्वा नव प्रतीच्छति नाभ्युपगच्छंति ते धीरा इति । यदशनीय तदाह : जं हवदि अणन्वीयं णिवहिमं फासुयं कयं चेव । णाऊण एसणीयं तं सिक्खं मुणी पडिच्छंति ॥ टीका-यसवत्यबीजं निर्बीजं नितिमं निर्गतमध्यसारं प्रासुक कृतं चैव ज्ञात्वाऽशनीयं तदक्ष्यं शुनयः प्रतीच्छन्ति । (६-६०) __इन दोनो गाथाओमेसे पहली गाथामे मुनिके लिये 'अभक्ष्य क्या है और दूसरीमे 'सक्ष्य क्या है' इसका कुछ विधान किया है। पहली गाथामे लिखा है कि- 'जो फल, कन्द, मूल तथा बीज अग्निसे पके हुए नही हैं और जो भी कुछ कच्चे पदार्थ हैं उन सबको अनशनीय (अमक्ष्य) समझकर वे धीर मुनि भोजनके लिये ग्रहण नही करते हैं। दूसरी गाथामे यह बतलाया है किजो बीजरहित हैं, जिनका मध्यसार ( जलभाग ? ) निकल गया है अथवा जो प्रासुक किये गये हैं ऐसे सव खानेके पदार्थों
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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