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________________ ३८६ युगवीर-निवन्धावली म्लेच्छोका समावेश करते हैं और वह है उन म्लेच्छ कन्याओसे आर्यपुरुषोके सम्बन्ध-द्वारा उत्पन्न होनेवाले मनुष्योकी जाति !!! इसके लिये शास्त्रीजीको शब्दोकी कितनी ही खीचतान करनी पडी है और अपनी नासमझी, कमजोरी, तथा हेराफेरीको जयधवलके रचयिता आचार्य महाराजके ऊपर लादते हुए यहाँ तक भी कह देना पड़ा है कि - (१) "आचार्यने सूत्रमे आये हुए 'अकर्मभूमिक' शब्दकी परिभापाको बदल कर अकर्मभूमिकोमे सयम-स्थान बतलानेका दूसरा मार्ग स्वीकार किया !" (२) " 'ततो न किंचिद् विप्रतिपिद्धम्' पदसे यह बात ध्वनित होती है कि 'अकर्मभूमिक' की पहली विवक्षामे कुछ 'विप्रतिषिद्ध' अवश्य था। इसीसे आचार्यको 'अकर्मभूमिक' की पहली विवक्षाको बदल कर दूसरी विवक्षा करना उचित जान पडा !" (३) “यदि आचार्य महाराजको पाँच खडोके सभी म्लेच्छ मनुष्योमे सकलसयमग्रहणकी पात्रता अभीष्ट थी और वे केवल वहाँकी भूमिको ही उसमे बाधक समझते थे--जैसा कि सम्पादकजीने लिखा है--तो प्रथम तो उन्हे आर्यखडमे आगत म्लेछ मनुष्योके सयमप्रतिपत्तिका अविरोध बतलाते समय कोई शर्त नही लगानी चाहिये थी। दूसरे, पहले समाधानके बाद जो दूसरा समाधान होना चाहिये था, वह पहले समाधानसे भी अधिक उक्त मतका समर्थक होना चाहिये था और उसके लिए 'अकर्मभूमिक' की परिभाषा बदलनेकी आवश्यकता नही थी।" (४) "इस प्रकारसे अकर्मभूमिक मनुष्योके सकलसयम-स्थान बतलाकर भी आचार्यको सतोष नही हुआ, जिसका सभाव्य
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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