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________________ अर्थ-समर्थन तालाब देखनेसे यह फल' होगा कि ( पचम कालमें ) जैनधर्म आर्यदेशको छोडकर प्रान्तदेशो ( Bordering Countries ) मे फैलेगा और म्लेच्छ देशोके निवासी जैनधर्मको धारण करेगे। इससे प्रगट है कि अन्य दूर देशोमें जैनधर्मके प्रचारकी कितनी आवश्यकता है और उसमें कितनी अधिक सफलता प्राप्त हो सकती है। (३) ७–उक्त आदिपुराणमें भरतजीके पांचवे स्वप्नका फल वर्णन करते हुए लिखा है कि पचमकालमे आदिक्षत्रियवशोका उच्छेद हो जायगा और उनसे कुछ हीन वश व कुलके मनुष्य पृथ्वीका पालन करेंगे। ऐसा नही लिखा कि म्लेच्छ कुलमे ही राज्य होगा। यथा : करीन्द्रकन्धरारूढशाखामृगविलोकनात् । आदिक्षत्रान्वयोच्छित्तौ क्ष्मां पास्यन्त्यकुलीनकाः॥ (४१-६९)" अब पडितजी अपने १६ जूनके लेखमें इन तीनो प्रमाणोमे से अन्तके दो प्रमाणोके श्लोकोका अर्थ (विपरीत) बतलाते हैं। सबसे पहले आप अन्तिम श्लोकके अर्थके सम्बन्धमे इस प्रकार लिखते हैं :-- "अकुलीन शब्दका अर्थ आपने कुछ हीन वश ग्रहण किया है सो वह कदापि ठीक नही, क्योकि प्रकरणके अनुकूल शब्दके अर्थोंमेसे योग्य अर्थ लेते हैं, "शक्यसम्बन्धो लक्षणा' 'अ' शब्द निषेधवाचक व 'ईषत् किंचित् अर्थ वाचक है।" ___बस, इस श्लोकके अर्थ-सम्बन्धमें पडितजीने इतना ही लिखकर छोड़ दिया है। खडनके लिये इसीको पर्याप्त समझ लिया है और इतने से ही अर्थ विपरीत सिद्ध हो गया।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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