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________________ ३४ युगवीर-निवन्धावली तो ऐसा करना अपनेको इष्ट नही है और इसीलिये पडितजीने अपने लेखमे यह प्रेरणा भी की थी कि सहसू लाम छोड़कर भी इन देशोमे नहीं जाना चाहिये। इसपर मैने निम्नलिखित रूपसे तीन प्रमाण पडितजीको भेंट किये थे, जिनका स्पष्ट आशय यह था कि पडितजीने आदिपुराणके हवालेसे भरतजीके जिन दो स्वप्नोका जो फल लिखा है वह बिलकुल गलत है, आदिपुराणमे वैसा नहीं लिखा है। इस शास्त्रमे कुछ और ही रूपसे भविष्यवाणी की गई है और उसके अनुसार म्लेच्छ देशोमे जाकर जैनधर्मके प्रचार करने की खास जरूरत पाई जाती है । साथ ही म्लेच्छोकी कुलशुद्धिका विधान भी दिया गया है। मेरे वे प्रमाण इस प्रकार थे :-- (१) "५---भगवज्जिनसेनाचार्य आदिपुराणमे लिखते है कि, प्रजाको बाधा पहुंचानेवाले ऐसे अनक्षर म्लेच्छोको कुलशुद्धि आदिके द्वारा अपने बना लेने चाहिये ।" जिससे प्रगट है कि म्लेच्छ लोग केवल जैनी ही नही हो सकते, बल्कि उनकी कुलशुद्धि भी हो सकती है। यथा --- स्वदेशेऽनक्षरम्लेच्छान्प्रजाबाधाविधायिनः । कुलशुद्धिप्रदानाद्यैः स्वसाकुर्यादुपक्रमैः ।। (४२-१७९) . (२) ६---उक्त आदिपुराणमें भरतजीके आठवे स्वप्नका फल वर्णन करते हुए लिखा है कि शुष्कमध्यतडागस्य पर्यन्तेऽम्बुस्थितीक्षणात् । प्रच्युत्यायनिवासात्स्याद्धर्मः प्रत्यन्तवासिषु ॥ (४१-७२) अर्थात्-~मध्यमे सूखा और किनारोपर जल लिये हुए ऐसा
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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