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________________ ३२४ युगवीर-निबन्धावली थे - " तू इस धर्मविनय ( धर्म ) को नही जानता, मैं इस धर्मविनयको जानता हूँ, तू क्या इस थर्मविनयको जानेगा, तू मिथ्या रुढ है, मैं मत्यारुढ हूँ" इत्यादि । यह तूतुकार और गालीगलोज क्या ब्रह्मचारीजी भगवान् गौतमस्वामी और सुधर्मास्वामी आदिके बीच हुआ मानते हैं जो कि भ० महावीरके मुख्य गणधर थे और गीतमस्वामीको तो उसी समय केवलज्ञानकी प्राप्ति भी हो गई थी ? यदि ऐसा है तो वे एक केवलज्ञानी और महामुनिकी पोजीशनको कैसे सुरक्षित रख सकेगे ? - २ -- इस सुत्तमं वर्णित मृत्यु-समाचारको चन्द नामक वौद्धभिक्षु वर्षावास समाप्त करते हो बुद्धके पास ले गया था और उसने जाते ही कहा था कि " निगठनातपुत्त अभी अभी पावामें मरे हैं, उसके मरनेपर निगठ लोग दो भाग हो इत्यादि । इससे स्पष्ट है कि यह समाचार मृत्युके बाद थोड़े ही समयके अनन्तर — ज्यादा-से-ज्यादा १५-२० दिनके बाद बुद्धके पास पहुँचाया गया है । इस अल्प समयके भीतर जैन साधुसघके कौन-से दो विभाग हुए ब्रह्मचारीजी मानते हैं ? क्योकि दिगम्बर और श्वेताम्बर रूपसे जो दो भेद हुए हैं वे तो महावीरके निर्वाणरो बहुत वादकी — — केवलियो और श्रुतकेवलियोंके भी वादके समयकी – घटनाएँ हैं । यदि इन्ही दो भेदोको लक्ष्य करके उस सूत्रमे उल्लेख किया गया है और जिसका कुछ आभास "निगठके श्रावक जो गृही श्वेतवस्त्रधारी थे वे भी नातपुत्तीय निगठोमे ( वैसे ही ) निर्विण्ण विरक्त प्रतिवाण रूप थे" इत्यादि इसी सूत्रके दूसरे वाक्योसे भी मिलता है तब यह सूत्र सत्य और प्रामाणिक कैसे ? ३ - सामगामसुत्तमे जिस पावाका उल्लेख है वह बौद्ध • 71
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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