SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्मचारीजीकी विचित्र स्थिति और अजीब निर्णय ३२३ कहता है कि उनके निर्वाणके पीछे निम्रन्य-साधुओमे मतभेद हो रहा है । तब चुन्द व आनन्द दोनो गौतमबुद्धके पास जाकर निवेदन करते हैं। इस कथनको असत्य माननेका कोई कारण नही दीखता है। इससे यही सिद्ध है कि गौतमबुद्धके जीवनमे ही श्री महावीरस्वामीका निर्वाण हुआ। तथा तब गौतम ७६-७७ वर्षके थे।" ब्रह्मचारीजीके इस अजीब निर्णय एव आदेशसे ऐसा मालूम होता है कि उन्होने 'सामगामसुत्त'को स्वत प्रमाणके तौरपर मान लिया है, परन्तु फिर भी आपका कारणकी मार्गणा अथवा गवेषणा करते हुए यह लिखना कि "इस कथनको असत्य माननेका कोई कारण नही दीखता है" अजीब तमाशा जान पडता है । कारण तो ऊपर एक नही अनेक बतलाये गये हैं। उन्हें क्या ब्रह्मचारीजीने पुस्तकमे पढा नही और वैसे ही इधर-उधरके दो चार पत्र पलटकर अपना निर्णय दे डाला है ? बिना पूरा पढे और बिना अच्छी तरहसे जॉच किये किसी भी युक्ति-पुरस्सर लेखनीके विरुद्ध कलम चलाना तो निस्सन्देह अति साहसका काम है । मैं पूछता हूँ यदि ब्रह्मचारीजीकी दृष्टिमे बौद्धोका 'सामगामसुत्ते बिलकुल ही प्रामाणिक वस्तु है-उसकी सत्यताके विरुद्ध उन्हे कोई भी कारण दिखलाई नहीं पडता-तो वे कृपया निम्न वातोका समाधान कर अपनी पोजीशनको स्पष्ट करे --- १-'सामगामसुत्तके शुरूमें ही लिखा है कि निंगठनातपुत्तके मरनेपर निगंठ ( जैनसाधु ) लोग दो भाग हो, भडन ( कलहविवाद ) करते, एक दूसरेको मुखरूपी शक्तिसे छेदते विहर रहे १. देखो, 'बुद्धचर्या में पृ० ४८१ पर उक्त सुत्तका अनुवाद ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy