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________________ एक विलक्षण आरोप ३०३ "यह लेखककी भूल है। अत्याचारी राजाको, सपरिवार तक, नष्ट कर डालनेका स्पष्ट आदेश मनुस्मृति आदिमे है। ---सपा० ।" पृ० ४२६ इससे पाठक समझ सकते हैं कि बैरिष्टर साहबके उक्त प्रश्नका क्या मूल्य है, उनकी लेखनी कितनी असावधान हे और और उनकी यह असावधानता भी उनकी कितनी परागदहदिलीअव्यस्थितचित्तता को साबित करती है, जिसका क्रोधके आवेशमे हो जाना बहुत कुछ स्वाभाविक है। साथ ही, उन्हे यह बतलानेकी भी जरूरत नही रहती कि इस प्रकारके फुटनोटोका यह कोई नया तरीका इख्तियार नही किया गया है, जैसा कि बैरिष्टर साहब समझते हैं । और यदि किया भी जाता तो वह 'अनेकान्त' के लिये गौरवकी वस्तु होता—अब भी इस विषयमे 'अनेकान्त' की जो विशेषता है वह उसके नामको शोभा देनेवाली है। क्या महज दूसरोका अनुकरण करनेमे ही कोई बहादुरी है और अपनी तरफसे किसी अच्छी नई बातके ईजाद करनेमे कुछ भी गुण नही है ? यदि ऐसा नही तो फिर उक्त प्रकारके प्रश्नकी जरूरत ही क्यो पैदा हुई ? नोट-पद्धतिकी उपयोगिताअनुपयोगिताके प्रश्न पर विचार करना था, जिसका लेखमे कही भी कुछ विचार नही है । मात्र यह कह देना कि नोट तो मकतवके परागदहदिल मौलवी साहवकी कमचियाँ है, विलायतमे ‘ऐसे लेखोको सम्पादक लेते ही नहीं जिनके नीचे फुटनोट लगाये वगैर उनका काम न चले' अथवा अमुक 'फुटनोट भी कम वाहियात नही' यह सब क्या नोट-पद्धतिकी उपयोगिता-अनुपयोगिताका कोई विचार है ? कदापि नही। फिर क्या अनुपयोगी सिद्ध किये बिना ही आप सपादकसे ऐसी आशा रखनो उचित सकझते हैं कि वह
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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