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________________ २९८ युगवीर-निवन्धावली उसका अनुवाद किया और शायद जर्मनीमे खुद गाकर उसे . . फोनोग्राफके रेकार्डमे भरवाया। इतनेपर भी आप बिलते हैं लिया कि 'मण्डनका अभी कोई काबिल तारीफ काम आपकी कलमका लिखा हुआ मेरे देखनेमे नही आया।' इससे पाठक समझ सकते है कि यह सब कितना दु माहस तथा सत्यका अपलाप है, वैरिस्टर साहब कोपके आवेशमे और एक मित्रका अनुचित पक्ष लेनेकी धुनमे कितने बदल गये हैं और आपकी स्मृति कहाँ तक विचलित हो गई है। सच है कोपके आवेशमे सत्यका कुछ भी भान नहीं रहता, यथार्थ निर्णय उससे दूर जा पडता है और इसीसे क्रोधको अनर्थोका मूल बतलाया है । आपकी इस कोपदशा तथा स्मृति-भ्रमका सूचक एक अच्छा नमूना और भी नीचे दिया जाता है वैरिष्टर साहब लिखते हैं-"अब देखे बाबू छोटेलालजीके साथ कैसी गुजरी ? सो उनके लेखके नीचे भी महापापोकी सख्या पूरी कर दी गई है यानी पाँच' फुटनोट सपादकजीने लगा ही दिये हैं।" यह है आपकी शिष्ट, सौम्य तथा गौरवभरी लेखन-पद्धतिका एक नमूना । अस्तु, बाबू छोटेलालजीके लेखपर जो नोट लगाये गये हैं उनकी सख्या पाँच नही है और न बाबू कामताप्रसादजीके लेखपर लगाये गये नोटोकी संख्या ही पाँच है, जिसे आप 'मी' शब्दके प्रयोग-द्वारा सूचित करते हैं, बल्कि दोनो लेखोपर लगे हुए नोटोकी सख्या आठ-आठ है। फिर भी बैरिष्टर साहबके हृदयमे 'पाँच' की कल्पना उत्पन्न हुई-वह भी पॉच' व्रतो, पाँच चारित्रो, पाँच समितियो अथवा पॉच इन्द्रियोकी नही किन्तु पाँच महापापोकी, और इसलिए आपको पूर्ण सयत भाषामे लिखे
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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