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________________ २९६ युगवीर-निवन्धावली क्या सत्यका निर्णय कर देना, जैनलाँकी तैयारीमे वडी भारी मदद पहुँचाना, असलियतको प्रकट कर देना और जैनधर्मको अपवित्रताके मैलसे शुद्ध करनेका उपाय करना, यह सब कोई मण्डनात्मक कार्य नही है ? जरूर हैं। तब आपका उक्त लिखना क्रोधके आवेशमे असलियतको भुला देनेके सिवाय और कुछ भी समझमे नही आता। दूसरे यह है कि सम्पादकके द्वारा लिखी हुई मेरी भावना, उपासनातत्त्व, विवाहसमुद्देश्य, स्वामी समन्तभद्र (इतिहास), जिनपूजाधिकारमीमासा, शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहरण, जैनाचार्योंका शासनभेद, वीरपुष्पाजलि, महावीरसदेश, मीनसवाद, हम दुखी क्यो ? और विवाहक्षेत्रप्रकाश जैसी पुस्तको तथा जैनहितैषी जैसे पत्रको भी, जो प्राय सभी आपको मिल चुके हैं, या तो आपने मण्डनात्मक नही समझा है और या उन्हे काविल तारीफ नही पाया है। मण्डनात्मक न समझना तो समझकी विलक्षणताको प्रकट करेगा और तब मडनका कोई अलौकिक ही लक्षण बतलाना होगा, इसलिये यह कहना तो नही बनता, तब यही कहना होगा कि आपने उन्हे काबिल तारीफ नही पाया है। अस्तु , इनमेसे कुछके ऊपर मुझे आपके प्रशसात्मक विचार प्राप्त हुए हैं उनमेसे तीन विचार जो इस वक्त मुझे सहज ही मे मिल सके हैं, नमूनेके तौर पर नीचे दिये जाते हैं। १ "आज 'शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहरण' प्राप्त हुआ। आपके लेख महत्त्वपूर्ण और सप्रमाण होते हैं। इस पुस्तकसे मुझे अपने विचारोके स्थिर करनेमे बहुत कुछ सहायता मिलेगी। आप दूरदर्शी हैं और गभीर विचार रखते हैं।" २ "विवाहक्षेत्र-प्रकाश' जो आपने देहलीमे मुझे दी थी
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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