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________________ एक विलक्षण आरोप २९५ स्वास्थ्यका उतना ही अधिक मण्डन होता है-किसी अगके गले-सडे भागको काट डालना उसके दूसरे स्वस्थ भागकी रक्षा करनेके बराबर है। इसी तरह शरीरके दोपोका जिन कार्योके द्वारा मण्डन होता है उन्हीके-द्वारा शरीरके स्वास्थ्यका साथ-हीसाथ खण्डन हो जाता है। अत खण्डनके साथ मण्डनका और मण्डनके साथ खण्डनका अनिवार्य सबध है, जिसको शास्त्रीय परिभाषामें अस्तित्वके साथ नास्तित्वका और नास्तित्वके साथ अस्तित्वका अविनाभावसम्बन्ध बतलाया गया है और जो स्वामी समन्तभद्रके ('अस्तित्वं प्रतिषेध्येनाविनामाव्येकर्धामणि' तथा 'नास्तित्व प्रतिषेध्येनाविनामाव्येकवमिणि' जैसे वाक्योसे स्पष्ट प्रकट है। अत काबिल तारीफ खण्डनके द्वारा काविल तारीफ मण्डनका कोई काम नही हुआ, यह कहना अथवा समझना ही भूल है और यह बात खुद वैरिष्ठर साहवके एक पत्रके भी विरुद्ध पडती है जिसमे आपने सम्पादकके 'ग्रथपरीक्षा-द्वितीय भाग' पर सम्मति देते हुए लिखा है "वाकईमे आपने खूब छानबीन की है और सत्यका निर्णय कर दिया है । आपके इस मजमूनसे मुझे बडी भारी मदद जैनलाके तैयार करनेमें मिलेगी। आपका परिश्रम सराहनीय है । मगरिवके विद्वान भी शायद इतनी वारीकीसे छानवीन नही कर पाते जिस तरहसे इस ग्रथ ( भद्रवाहसहिता) की आपने की है। आप जैनधर्मके दुश्मन कुछ अशखासकी निगाहमे गिने जाते हैं, यह इसी कारणसे है कि आपकी समालोचना बहुत बेढब होती है और असलियतको प्रकट कर देती है । मगर मेरे खयालमे इस काममें कोई भी अश जैनधर्मकी विरुद्धताका नही पाया जाता है, बल्कि यह तो जैनधर्मको अपवित्रताके मैलसे शुद्ध करनेका उपाय हैं।"
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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