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________________ म्लेच्छकन्याओंसे विवाह :२: मैने जैनमित्रमे "शुभचिह्न" शीर्षक एक लेख दिया था, जो ता० २४ मार्च सन् १९१३ के अक न० १० के पृष्ठ ६ पर मुद्रित हुआ है । इस लेखमे मैने एक स्थानपर यह लिखा था कि, "चक्रवतियोने म्लेच्छोकी कन्याओसे भी विवाह किया है।" मेरे इस लिखनेपर सम्पादक महोदय ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने यह फुटनोट दिया है .--- "यहाँ प्रकरण म्लेच्छखंडके राजाओंकी कन्याओसे है।" इस नोटसे सम्पादक महोदयका ऐसा अभिप्राय मालूम होता है कि वे म्लेच्छखडोमे आर्य राजाओका सद्भाव मानते हैं और उन म्लेच्छखडोमे उत्पन्न हुए आर्य-राजाओकी कन्याओसे ही चक्रवत्तियोने विवाह किया--म्लेच्छ राजा व इतर' म्लेच्छोकी कन्याओसे उन्होने विवाह नहीं किया--ऐसा उनका सिद्धान्त है।' इसीलिये उन्होने 'राजा' शब्दके पूर्व 'म्लेच्छ' शब्द भी नही लगाया है। यदि ऐसा न होता तो सम्पादक महोदयको इस नोटके देने की ही जरूरत न पडती। क्योकि किसी म्लेच्छके राजा हो जानेसे ही उसका म्लेच्छत्व नष्ट नहीं हो जाता, जब म्लेच्छत्व बना रहा तब मेरे उस लिखनेमे, जिसपर नोट दिया गया, और उक्त नोटमे वास्तविक भेद ही क्या रहा--जिसके लिये इतना कष्ट उठाया जाता । अस्तु, यदि थोडी देरके लिये यह भी मान लिया जाय कि सम्पादकजीका अभिप्राय इस 'राजा' शब्दसे १ राजा से भिन्न दूसरे ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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