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________________ एक आक्षेप २८७ देता हूँ कि वे 'अनेकान्त' की ४ थी किरणके पृ० २३० पर मुद्रित वाबू साहबके उस लेखको भी सामने रख लेवे जिसे आपने अपने उक्त आक्षेपमे "नोट' नाम दिया है। इससे उन्हे सत्यके निर्णयमे वडी सहायता मिलेगी, लेखो तथा पत्रोके परस्पर विरोधी कथन भी स्पष्ट हो जायंगे और वे सहज ही मे वाबू साहवके आक्षेपका मूल्य मालूम कर सकेगे - पहला पत्र-'अनेकान्त'के आगामी अङ्कके लिये तीन लेख भेज रहा है। इनमे जो आपको पसन्द आए वह प्रकट कर दीजिये। वाकी लौटा दीजिये । 'खारवेल' के शिलालेखका पहला पाठ मि० जायसवालने JBORS के भाग ३ मे प्रकट किया था और उसका सशोधन फिर किया था और उस सशोधित रूपका भी सशोधन गत वर्ष प्रकट किया है । मैंने पहला रूप और अन्तिम रूप देखा है और इसमे जो अन्तर हुआ वह प्रकट किया है परन्तु वीचका सशोधित रूप देखें विना कुछ स्पष्ट मैं नही लिख सका हूँ। यदि आप दिल्लीमे उसको देखकर फिर मिलान करलें तो अच्छा हो। मेरे खयालमे मुनिजीका पाठ अब शायद ही उसके उपयुक्त हो।" दूसरा पत्र--"अनेकाकान्त'का ४ था अबू मिला । उसमे आपने मेरे खारवेलके शिलालेखकी १४ वी पक्तिवाले नोटको यूँ ही प्रकट करके अच्छा वेवकूफ बनाया है। खेद है, आपने उसके साथ भेजे हुए मेरे पत्रपर ध्यान नही दिया ? मैने लिखा था कि जायसवालजीने इसके पहले (सन् १६१८ मे) जो सशोधन किया था, वह मेरे पास नही। मुझे उसीका ख्याल था और उसीपर यह नोट लिखने लगा-पर वह जब न मिला तो जो कुछ लिखा था, वह यूँ ही पूरा करके आपको भेज दिया और
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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