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________________ २६४ युगवीर-निवन्वावली गये हैं और ( इसलिये ? ) उनके निर्माणमे होनेवाली हिंसाहिंसा नहीं है"। आपका यह लिखना प्राय ऐसा ही है जैसा कि कुछ हिन्दुओका यह कहना कि-'वैदिकी हिंसा हिसा न मवति' -वेद विहित अथवा वेदोके अनुसार की गई हिंसा हिंसा नहीं होती। यद्यपि आपने अपनी इस वातको सिद्ध करनेके लिये प्रतिज्ञा की और उसके अनुसार पात्रकेसरीस्तोत्रके 'विमोक्षसुख' आदि तीन पद्यो ( न० ३७, ३८, ३६ ) को अर्थ-सहित पेश भी किया, परन्तु फिर भी उन पचो अथवा अर्थपरसे कही भी इस वातको सिद्ध अथवा स्पष्ट करके नही बतलाया कि जिनमन्दिरको बनाने अथवा निर्माण करनेमे कैसे हिंसा नही होती, और यह आपके लेख अथवा कथनकी एक दूसरी विलक्षणता है । मैं पूछता हु क्या मन्दिरके निर्माण करनेमे आरम्भ नही होता ? रागादिक भावोकी उत्पत्ति नही होती ? अथवा प्रमत्तयोग नही होता ? यदि यह सब कुछ होता है तो फिर हिंसा कैसे नही होती ? हिंसा जरूर होती है। यह वात दूसरी है कि उसकी मात्रा पुण्यकी अपेक्षा बहुत अल्प हो अथवा गृहस्थ लोग ऐसी हिंसाको टाल न सकते हो, परन्तु तात्विक दृष्टिसे विचार करनेपर उसमें हिसाका सद्भाव जरूर मानना पडेगा-प्राणि-पीडनसे भी वह खाली नही, और उसका स्पष्ट उल्लेख आचार्य महोदयके 'विमोक्षसुख' वाले पद्यमे भी पाया जाता है। अब मैं यहाँपर पात्रकेसरीस्तोत्रके उस 'विमोक्षसुख' वाले पद्यकी स्थितिको स्पष्ट कर देना चाहता हूँ, जिससे उसके विपयका भ्रम और भी साफ हो जाय, और उसके लिये पहले उक्त पद्यको एक पूर्ववर्ती और दो उत्तरवर्ती पद्योके साथ और उन प्रस्तावना-वाक्योके साथ उद्धृत करता हूँ, जो टीकामे इन चारो पद्योको देते हुए उनसे पहले दिए गए हैं . -
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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