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________________ उपासना विषयक समाधान २.५ साधनकी दृष्टिने होता है--समारी जीवोको ममाग्के दुयोमे छुडाकर उत्तम मुग प्राप्त करना हो म मुख्य ध्येय अथवा प्रधान लक्ष्य है-तत्र लोक-हितको दृष्टिमे यदि भगवान् तिमी कार्यके करने या न करनेके लिये कहे तो इसमे जैन-सिद्धान्नमें कौन-सा विरोध आता है ? ओर त्रिलोकगुरु भगवान्के आदेशगे उनके उपदेशमै कौन-सी विभिन्नता हो जाती है ? शायद बढजात्याजी यह कहे कि भगवान्का उपदेग ती बिना इच्छाके होता है, तब मैं पूछता हू कि उसी तरहपर-बिना इच्छाके-उनका आदेश नहीं बन सकता ? उममे कौन-सा बाधक है । जरा बतलाइये तो सही ? अच्छा होता यदि बडजात्याजी दिव्य-ध्वनिकी अपनी उस विशेषताको भी प्रकट कर देते जो उनके ध्यानमे समाई हुई है और जिसपर ध्यान न देनेकी आपको मेरी शिकायत है और आप बडे दर्पके साथ, ऊपर उद्धृत किये हुए वाक्य न० २ के अनन्तर ही लिखते हैं . "शोक है कि इस साधारण वातको भी आपने ध्यानमे नही रक्खा, नही तो आपको यह सब लिखनेका कष्ट नही उठाना पडता ?" ___दिव्य-ध्वनिकी विशेषतावाली बात साधारण हो या असाधारण, परन्तु मेरे ध्यानमे तो अभीतक भी नही आई-मुझे ऐसी कोई भी विशेषता उसमे मालूम नही पड़ी जिसमे बडजात्याजीके कथनका समर्थन और मेरे कथनका खडन होता हो। अव भी यदि वडजात्याजीको उसपर कुछ भरोसा हो तो वे उसे खुशीसे प्रकट करे। परन्तु इस वातका ध्यान रहे कि इस विपयमे जो कुछ लिखा जाय' वह शास्त्रोका गहरा अध्ययन करनेके वाद लिखा जाय-यो ही, विना सोचे समझे कलम उठाकर अशिक्षिता
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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