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________________ २५२ युगवीर-निवन्वावली कहा है। सर्वज्ञकी इम आज्ञाके भी दो भेद किये गये हैं-एक हेतुवादरूप' और दूसग अहेतवादरूप । यथा. तत्राना द्विविधा हेतुबादेतरविकल्पतः । सर्वनस्य विनयान्तःकरणायत्तवृत्तितः ॥ -तचार्यश्लोकवार्तिक । यहा भी जब मर्वनकी कोई आज्ञा ही नहीं तो फिर आज्ञाक ये दो भेद के ? और आजाको प्रमाणीकृत करके प्रवर्तित होने वाला यह 'आताविचय' धर्मध्यान भी कैना ? मालूम नही वडजान्याजीने किम आधारपर भगवान्की आज्ञा अथवा आदेश प्रवृत्तिका निषेध किया है। ऊपरके इस मव कथन अथवा प्रमाणवाक्योपरसे तो सर्वन भगवान्की आज्ञाका भले प्रकार अस्तित्व पाया जाता है । और साथ ही, यह भी ध्वनित होता है कि वह आज्ञा सर्वज्ञके आगमने भिन्न नहीं है-सर्वज्ञका आगम ही सर्वज्ञकी आज्ञाओका समूह अथवा सत्रह है। श्रीपूज्यपाद आचार्यने भी 'सर्वार्थसिद्धि' में 'आज्ञावित्रय' धर्मध्यानका स्वत्प देते हुए, 'सर्वज्ञप्रणीत आगम' को 'आज्ञा' सूचित किया है। और इससे यह साफ १. आज्ञाप्रकाशनार्थो वा हेतुबाद । मामादयमप्याज्ञाविचय ॥ -तत्वार्थश्लोकवार्तिक । २ आज्ञाप्रामाण्यादर्थावधारणमानाविचय. सोऽयमहेतुवादविषयोऽननुमेयार्थगोचरार्थत्वात् । -~-तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक ३ यथा -उपदेष्टुरमावान्मन्दबुद्धित्वाकर्मोदयात्सूक्ष्मत्वाच्च पदाना हेतुदृष्टान्तोपरमे सति सर्वज्ञप्रणीतागम प्रमाणीकृत्य, इत्थमेवेद मान्यथावादिनो जिना इति गहनपदार्थभ्रद्धानमर्थावधारणमाज्ञाविचय । -सर्वार्थसिद्धि ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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