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________________ २३२ युगवीर-निवन्धावली यह पद्य भी दिया गया था, और न उसमे आवाहन, विसर्जनादिकको गृहस्थके लिए कोई आलम्बन ही बतलाया है, बल्कि इनका नामोल्लेख तक नही, केवल 'आलम्बनानि विविधानि' ऐसे सामान्य पदोका प्रयोग किया गया है। जिनसे उन आवाहनादिक पाँचो अगोका ग्रहण कोई लाजिमी नहीं आता। अच्छे आलम्बन तो मूर्ति और विविध-स्तुति-स्तोत्रादिक हैं, उनका ग्रहण उक्त पदोसे क्यो न समझ लिया जाय ? और इसी तरहपर 'द्रव्यस्य शुद्धि' पदोका वाच्य उस शरीर तथा वचनकी शुद्धिको क्यो न मान लिया जाय, जिसका अमितगति-आचार्य-द्वारा उल्लेखित प्राचीन द्रव्यपूजासे खास सम्बन्ध है ? इसका बडजात्याजीने कोई स्पष्टीकरण नही किया। तब उन्होने उक्त श्लोकको पेश करके क्या नतीजा निकाला और क्या सिद्ध किया, यह कुछ समझमे नही आता । इसके सिवाय, मैंने अपने लेखमे प्रचलित द्रव्यपूजाका कोई खास विरोध भी नहीं किया था जिसके विपक्षमे ही किसी तरहपर उक्त श्लोकको पेश किया जा सकता, बल्कि अमितगतिआचार्यके उक्त पद्यके वाद जो एक वाक्य दिया है, उसमें "पूजाने जोर पकडा' इन शब्दोका व्यवहार करके यह साफ ध्वनित किया है कि नैवेद्य-दीप-धूपबाली पूजाके जोर पकडनेसे पहले भी उसका किसी-न-किसी रूपमे कुछ अस्तित्व जरूर था, तभी उसके लिये "जोर पकडा" ऐसे शब्दोका प्रयोग किया गया है। और यदि विरोध किया भी होता तब भी उक्त श्लोक उसके विपक्षमे उस वक्ततक कार्यकारी नही हो सकता था जबतक कि यह सिद्ध न कर दिया जाता कि जिस पूजा-पुस्तकका यह श्लोक है वह अमितगति-आचार्य (विक्रमकी ११ वी शताब्दी) से बहुत पहलेकी अथवा अग-पूर्वादिके पाठी पुरातन
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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