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________________ उपासना-विषयक समाधान २२९ अशास्त्रसम्मत मूर्तियाँ बनवाने और अनाप-शनाप अशुद्ध पाठोका उच्चारण कराने आदि उन सभी बातोका अभिनन्दन करते हैंउन्हे अच्छी, जरूरी, शास्त्रोक्त और उपासनाकी उद्देश्य-सिद्धिके लिए आवश्यक समझते हैं-जो समाजमे प्रचलित है और जिनको मैंने अपने लेखमे दोपरूपसे उल्लेखित किया है। परन्तु आपने उन्हे निर्दोप अथवा उपयोगी सिद्ध करनेका कोई यत्न नही किया-कोई ऐसा आगम-प्रमाण भी पेश नहीं किया, जो नौकरोसे पूजन कराने आदिका विधायक हो-और न लेखकके द्वारा सूचित किए हुए दोपो अथवा स्थिति-प्रदर्शनको आप किसी तरहपर गलत ही सावित कर सके हैं, तब केवल आपके न माननेमात्रसे ही वे गलत नही हो जाते, न समाजकी स्थिति कुछ अन्यथा हो सकती है और न सदोप उपासना ही कही निर्दोष ठहर सकती है। इसी तरहपर बडजात्याजीने यह तो स्वीकार किया कि हमारे देव बुलानेसे आते, बिठलानेसे वैठते और ठहरानेसे ठहरते नही है, परन्तु फिर उन्हे क्यो बुलाया जाता है, क्यो उनकी आह्वानादिक किया जाता है और क्यो उनसे यह कहा जाता है कि तुम अपना यज्ञभाग लेकर अब अपने-अपने स्थानपर जाओ। इस शकाका आपने कोई समाधान नहीं किया- केवल इतना लिख दिया है कि 'ये आह्वानादिक पूजाके पाँच अग हैं, इनमे कुछ दोप नही है ।' परन्तु इस लिख देने मात्रसे ही वे पूजाके कोई शाश्वत अग नही वन जाते और न जैन सिद्धान्तोकी प्रतिकूलताका आरोपित दोप ही उनपरसे दूर हो जाता है। वे किसी समय पूजनके अग बन गये हैं, यह वात मैने स्वय ही अपने लेख में प्रकट की थी, बडजात्याजीको यदि इसका विरोध इष्ट था तो उन्हे इस
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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