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________________ २१८ युगवीर निवन्धावली ११ वी शताब्दीका बना हुआ है, एक पद्य निम्नप्रकारसे पाया जाता है . इच्छाकार समाचारं संयमाऽसंयमस्थितः । विशुद्धवृत्तिभिः सार्वम विदधाति प्रियवदः ।। ८- २ यह पद्य उत्कृष्ट श्रावककी चर्याका कथन करते हुए मध्यमे दिया गया है. इससे पहले तथा पिछले दोनो पद्योमे 'उत्कृष्ट श्रावक'का' उल्लेख है और इसलिए इस पद्यमे प्रयुक्त हुए 'संयमासंयमस्थित.' पदका वाच्य 'उत्कृष्ट श्रावक' जान पडता है । उमीके लिए उस पद्यमे यह बतलाया गया है कि वह विशुद्धवृत्तिवालोके साथ 'इच्छाकार' नामके समाचारका व्यवहार करे। उत्कृष्टथावककी दृष्टिमे विशुद्ध-वृत्तिवाले मुनि हो सकते हैं। प० कल्लप्पा भरमप्पा निटवेने भी, इस पद्यके मराठी अनुवादमें 'विशुद्ध-वृत्तिमि.' पद्यमे उन्हीका आशय व्यक्त किया है। ज्यादासे-ज्यादा इस पदके द्वारा क्षुल्लक-ऐलकका भी ग्रहण किया जा सकता है और इस तरहपर यह कहा जा सकता है कि अमितगति-आचार्यने इस पद्यके-द्वारा उत्कृष्ट श्रावकोके लिए मुनियोके प्रति, अथवा परस्परमे भी, 'इच्छामि' कहनेका विधान किया है । परन्तु यह नहीं कहा जा सकता है कि जो लोग विशुद्ध-वृत्तिके धारक न होकर साधारण गृहस्थ जैनी है-अव्रती अथवा पाक्षिक श्रावक हैं-उनके साथ भी इच्छाकारके व्यवहारका १. यया-उत्कृष्टश्रावकेणते विधातव्या. प्रयत्नतः । उत्कृष्ट कारयत्येप मुण्डन तुण्ड-मुण्डयो. ॥ ७१,७३ ॥ २ यथा-शुद्धाचारसम्पन्न अशा मुनीसर इच्छाकार ना वाचा समाचारकरितो'।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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