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________________ २१६ युगवीर-निवन्धावली इस दृष्टिसे भी जयजिनेन्द्र' का व्यवहार उत्थापन किये जानेके योग्य नही है-अर्वाचीन मानलेनेपर भी उसका निषेध नही किया जा सकता । वह जैनियोके लिए एक सुन्दर, श्रेष्ठ और समाचीन व्यवहार होनेकी क्षमता रखता है। 'जुहारु' को अपेक्षा 'जयजिनेन्द्र' का अर्थ भी बहुत कुछ स्पष्ट तथा व्यक्त है। मेरी रायमे 'जुहारु' का युग यदि किसी समय था तो वह चला गया, अब 'जयजिनेन्द्र' का युग है। और इसलिए सवोको सच्चे हृदयसे परस्परमे 'जयजिनेन्द्र'का व्यवहार करना चाहिये । ___ रही 'इच्छाकार' की बात, इच्छाकार 'इच्छामि' ऐसा उच्चारण करनेको कहते हैं। और 'इच्छामि' का अर्थ होता है-इच्छा करता हूँ या चाहता हूँ। परन्तु किस बातकी इच्छा करता हूँ अथवा क्या चाहता हूँ यह इस शब्दोच्चारणपरसे कुछ मालूम नहीं होता। हो सकता है कि जिस व्यक्ति-विशेषके प्रति यह शब्दोच्चारण किया जाय उसके व्यक्तित्वकी इच्छा करना, उसके पदस्थ या धार्मिक जीवनको चाहना, सराहना अथवा वैसे होनेकी वाछा करना ही उसके द्वारा अभीष्ट हो । परन्तु कुछ भी हो, इसमे सन्देह नही कि यह शब्द समाजके पारस्परिक व्यवहार१. इच्छाकार इच्छामीत्येवंविधोच्चारणलक्षणम् । -सागारधर्मामृत टीका । प० मनोहरलाल शास्त्रीने माणिकचन्द्रग्रन्थमालाके त्रयोदशवें ग्रन्थ ( पृष्ठ ६३ ) में इच्छाकारपर टिप्पणी देते हुये लिखा है-"स्वेच्छया 'जयजिनेन्द्र' 'जुहारु' इत्यादि अर्थात् अपनी इच्छासे जयजिनेन्द्र, जुहार इत्यादिका व्यवहार करना 'इच्छाकार' कहलाता है ।" परन्तु इच्छाकारका ऐसा आशय नहीं है। यदि यह आशय मान लिया जाय तव तो जयजिनेन्द्र के विरोधके लिये फिर कोई वात ही नहीं रह सकती।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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