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________________ २०४ युगवीर-निवन्धावली - रामपुरवाले भाईका वह प्रश्न इस प्रकार है -'जैन समाजमे जो 'जयजिनेन्द्र' का शब्द प्रचलित है और हर एक व्यक्ति एक दूसरेसे समागमके समय 'जयजिनेन्द्र' करता है। यहाँ पर जव श्री १०५ पूज्य ऐलक पन्नालालजी महाराज पधारे तो उन्होने इसका निषेध किया कि इस तरह जिससे जयजिनेन्द्र कहा जाय वह जिनेन्द्र हो जाता है। इसलिये वजाय जयजिनेन्द्रके जुहार करना चाहिये। क्योकि यहाँकी समाजकी समझमें यह वात न ठीक आई है और न इसका अर्थ यह समझमे आता है इसलिये विद्वान महोदय इसका जवाब दे ।' इस प्रश्नमे ऐलकजीके जिस हेतुका उल्लेख किया गया है, उसमे कुछ भी सार मालूम नहीं होता। समझमे नही आता कि जिसे 'जयजिनेन्द्र' कहा जाता है वह कैसे जिनेन्द्र हो जाता है। क्योकि लोकमे किसीको 'राम राम' या 'जय रामजी' कहनेसे वह 'राम' हो जाता है अथवा समझा जाता है ? और पारस्परिक अभिवादनमे जय गोपाल' या 'जय श्रीकृष्ण' शब्दोके उच्चारणसे क्या कोई गोपाल या श्रीकृष्ण बन जाता अथवा उस पदको प्राप्त हो जाता है ? यदि ऐसा कुछ नही है तो फिर परस्परमे 'जय जिनेन्द्र' कहनेसे ही कोई कैसे जिनेन्द्र हो जाता है, यह एक बहुत ही मोटी-सी बात है। कहनेवालेका अभिप्राय भी उस व्यक्तिविशेषको जिनेन्द्ररूपसे सम्बोधन करनेका नही होता, बल्कि उसके सम्वोधनका पद यदि होता है तो वह अलग होता है-जैसे, भाई साहब ! जयजिनेन्द्र ।, प्रेमीजी ! जयजिनेन्द्र, महाशय । जयजिनेन्द्र, 'जयजिनेन्द्र' साहब । जयजिनेन्द्रजी ! अजी जयजिनेन्द्र इत्यादि। ऐसी हालतमे रामपुरके जैन समाजकी समझमे यदि ऐलकजीकी उक्त बात नही आई और न 'जयजिनेन्द्र' शब्दोपरसे उन्हे वैसे अर्थका
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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