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________________ १६ युगवीर-निबन्धावली उनका विशेष स्नेह एव कृपादृष्टि रहती है । उनका आदेश हुआ कि मैं इस निबन्धावलीका 'प्राक्कथन' लिखूं । सूर्यको दीपक दिखाना धृष्टता जान पडी, किन्तु आदेशको टाल भी न सका । इन कुछ शब्दोंके साथ इस 'प्राक्कथन' को पाठकोकी भेंट करता हूँ, और श्री मुख्तार साहबके प्रति अपनी विनम्र श्रद्धाजलि समर्पित करता हुआ हार्दिक कामना करता हूँ, कि अभी कमसे कम एक दशक और हमारे बीच रहकर वे अपनी प्रतिभासे हमें लाभान्वित करते रहे । ज्योतिनिकुज, चार वाग, लखनऊ-४ १८ अगस्त १९६७ ( डा० ) ज्योतिप्रसाद जैन, ( एम. ए., एल-एल वी, पी-एच. डी. )
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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