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________________ विवाह - क्षेत्र- प्रकाश ४७५ वेपमे पुत्रको लेकर शीलायुधके पास गई तो उसने उसे पहिचाना तक भी नही । क्या इन्ही लक्षणोसे यह जाना जाता है कि दोनोका विवाह हो गया था । और भोगसे पहले पति-पत्नी वननेकी सब वातचीत ते हो गई थी ? कभी नही । उत्तरसे तो यह मालूम होता है कि भोगसे पहले शीलायुधने अपना इतना भी परिचय उसे नही दिया कि वह कौनसे वशका और कहाँका राजा है, -- इस परिचयके देनेकी भी उसे वादको ही जरूरत पडी — उसने तो अपने वीर्यसे उत्पन्न होनेवाले पुत्रकी रक्षा आदिके प्रबन्धके लिये ही यह कह दिया मालूम होता है कि तुम उसे लेकर मेरे पास आ जाइयो । फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि दोनोका परिचय और विवाहकी बातचीत होकर भोग हुआ था ? यदि दोनोका गन्धर्व-विवाह हुआ होता तो श्रीजिनसेनाचार्य उसका उसी तरहसे स्पष्ट उल्लेख करते जिस तरहसे कि उन्होने इसी प्रकरणमे प्रियंगुसुन्दरीके गधर्व विवाहका उल्लेख किया है ' । अस्तु, उक्त प्रश्नोत्तरके श्लोक निम्न प्रकार हैं और वे ऊपर उद्धृत किये हुए पद्योंके ठीक बाद पाये जाते हैं • - व्यजिज्ञपत्ततस्त सा साध्वी साध्वसपूरिता । ऋतुमत्यार्यपुत्राहं यदि स्यां गर्भधारिणी ॥ ४० ॥ तदा वद विधेयं मे किमिहाकुलचेतसः । पृष्टस्ततः सतामाह माकुलाभू प्रिये शृणु ॥ ४१ ॥ इक्ष्वाकु कुलजो राजा श्रावस्त्यामस्तशात्रवः । शीलायुधस्त्वयावश्यं द्रष्टव्योह सपुत्रया ॥ ४२ ॥ १. प्रियगुसुन्दरी सौरिं रहसि प्रत्यपद्यत । सा गधर्व विवाहादिसहसन्मुखपकजा ॥६८॥
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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