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________________ १७४ युगवीर-निवन्धावली घर भेज देते। ऋषिदत्ताको तब क्या जरूरत थी वह डरती और घबराती हुई यह प्रश्न करती कि ऋतुमती होनेसे यदि मेरे गर्भ रह गया हो तो मैं उसका क्या करूँगी ? एक विवाहिता स्त्री गर्भ रह जानेपर क्या किया करती है ? जव वह खुद बालिग ( प्राप्तवयस्क ) थी, अपनी खुशीसे उसने विवाह किया था और एक ऐसे समर्थ पुरुषके साथ विवाह किया था जो कि राजा था तो फिर उसके लिये डरने, घबराने और थर-थर कापनेकी क्या जरूरत थी ? प्रियंगुसुन्दरीका भी तो वसुदेवके साथ पहले गन्धर्व विवाह ही हुआ था। वह तो तभीसे उनके साथ रहने लगी थी। और बादको उसका बाजाब्ता विवाह भी हो गया था। हो सकता है कि ऋषिदत्ता अपने तापसी जीवनमें ही रहना चाहती हो और इसीलिये केवल पुत्रके वास्ते उसने पूछ लिया हो कि उसके होनेपर क्या किया जाय ? ऐसी हालतमे उसका वह कर्म गन्धर्व-विवाह नही कहला सकता। शीलायुधने उसके प्रश्नका जो उत्तर दिया उससे भी यह बात नही पाई जाती कि उनका परस्पर विवाह हो गया था। वह कहता है 'प्रिये । डरो मत, मैं श्रावस्ती नगरीका इक्ष्वाकुवशी राजा हूँ और शीलायुध मेरा नाम है, जब तेरे पुत्र हो तब तू पुत्र-सहित मेरे पास आइयो-~अथवा मुझसे मिलियो ।' वाह ! क्या अच्छा उत्तर है ! क्या अपनी पत्नीको ऐसा ही उत्तर दिया जाता है ? यदि विवाह हो चुका था तो क्यो नही उसने दृढताके साथ कहा कि मैं तुझे अभी अपने घरपर बुलाये लिये लेता है ? क्यो तापसाश्रममे ही अपने पुत्रका जन्म होने दिया ? और क्यो उसने फिर अन्त तक उसकी कोई खबर नही ली ? वह तो उसे यहाँ तक भूल गया कि जब वह मरकर देवी हुई और उसी तापसी
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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