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________________ १५२ युगवीर- निवन्धावली आर्य राजाओका होना और उनकी कन्याओसे चक्रवर्ती आदिका विवाह करना अथवा वसुदेवका वहाँसे अपनी ही जातिकी कन्याका ले आना कैसे वन सकता है ? कदापि नही । और इसलिये यह समझना चाहिए कि जिन लोगोंने — चाहे वे कोई भी क्यो न हो –— म्लेच्छखडोकी कन्याओसे विवाह किया है उन्होने म्लेच्छोकी म्लेच्छ कन्याओमे विवाह किया है । म्लेच्छवकी दृष्टिसे कर्मभूमिके सभी म्लेच्छ समान हैं और उनका प्राय वही समान आचार है जिसका उल्लेख भगवज्जिनसेनाचार्यने अपने उस पद्यमें किया है जो ऊपर उद्धृत किये हुए उदाहरणाशमे दिया हुआ है । समालोचकजीको वह म्लेच्छाचार देखकर बहुत ही क्षोभ हुआ मालूम होता है । आपने जराके पिताको किसी तरह पर उस म्लेच्छाचारमे सुरक्षित रखनेके लिये जो प्रपच रचा है उसे देखकर वडा ही आश्चर्य तथा खेद होता है । आप सबसे पहले लेखकपर इस वातका आक्षेप करते हैं कि उसने उक्त पद्यके आगे-पीछेके दो-चार श्लोकोको लिखकर यह नही दिखलाया कि उसमे कैसे म्लेच्छोका आचार दिया हुआ है । परन्तु स्वय उन श्लोकोको उद्धृत करके और सबका अर्थ देकर भी आप उक्त पद्यके प्रतिपाद्य विषय अथवा अर्थ- सवधमे किसी भी विशेपताका उल्लेख करनेके लिये समर्थ नही होसके - यह नही वतला सके कि वह -- हिंसामे रति, माक्षभक्षणमे प्रीति और जबरदस्ती दूसरोकी धनसम्पत्तिका हरना, इत्यादि - - म्लेच्छोका प्राय. साधारण आचरण न होकर अमुक जातिके म्लेच्छोका आचार है । और न यह ही दिखला सके कि लेखकके उद्धृत किये हुए उक्त पद्यका अर्थ किसी दूसरे पद्यपर अवलम्वित है, जिसकी वजहसे उस दूसरे पद्यको भी उद्धृत करना
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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