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________________ विवाह क्षेत्र प्रकाश वाले किसी म्लेच्छ राजाकी कन्या थी, यह बात तो ऊपर श्रोजिनसेनाचार्यके वाक्योसे सिद्धकी जा चुकी है । अब मैं इस भ्रमको भी दूरकर देना चाहता हूँ कि जैनियो के द्वारा माने हुए ' म्लेच्छखण्डोमे आर्य जनताका भी निवास है। - १५१ श्रीअमृतचन्द्राचार्य, तत्त्वार्थसारमे, मनुष्योके आर्य और म्लेच्छ ऐसे दो भेदोका वर्णन करते हुए, लिखते हैं --- आर्यखण्डोद्भवा आर्या म्लेच्छा' केचिच्छकादयः । म्लेच्छखण्डोद्भवा म्लेच्छा अन्तर्दीपजा अपि ॥ २१२ ॥ अर्थात् - आर्य खण्डमे जो लोग उत्पन्न होते हैं वे 'आर्य' कहलाते हैं परन्तु उनमे जो कुछ शकादिक' ( शक, यवन, शबर, पुलिन्दादिक ) लोग होते हैं वे म्लेच्छ कहे जाते हैं और जो लोग म्लेच्छखण्डोमे तथा अन्तद्वपोमे उत्पन्न होते हैं उन सबको 'मलेच्छ' समझना चाहिये । इससे प्रकट है कि आर्य - खण्डमे जो मनुष्य उत्पन्न होते हैं वे तो आर्य और म्लेच्छ दोनो प्रकारके होते हैं, परन्तु म्लेच्छखण्डोमे एक ही प्रकारके मनुष्य होते हैं और वे म्लेच्छ ही होते हैं । भावार्थ – म्लेच्छोके मूल भेद तीन - (१) आर्यखण्डोद्भव, (२) म्लेच्छखण्डोद्भव और (३) अन्तद्वपज । और आर्योंका मूलभेद एक आर्यखण्डोद्भव ही है । जब यह बात है तब म्लेच्छखण्डोमे --- हैं 1 १ आधुनिक भूगोलवादियोंको इन म्लेच्छखण्डका अभी तक कोई पता नही चला । अव तक जितनी पृथ्वीकी खोज हुई है वह सव, जैनियोंकी क्षेत्र - गणना के अनुसार अथवा उनके मापकी दृष्टिसे, आर्यखण्डके ही भीतर आ जाती है । २. “ शकयवनशवरपुलिंदादयः म्लेच्छाः” । ३. इन पहले दो भेदोंका नाम 'कर्मभूमिज' भी है
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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