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________________ विवाह-क्षेत्र-प्रकाश १४१ आर्य जातिका होते हुए म्लेच्छोपर शासन करता है। परन्तु समालोचकजीने दूसरे विद्वानोके अवतरणोको लेकर और उन्हे भी न समझ कर उनके शब्द-छलसे लेखकपर यह आपत्ति की है कि उसने म्लेच्छखडोपर शासन करनेवाले आर्य जातिके चक्रवर्ती राजाओको भी म्लेच्छ ठहरा दिया है। आप लिखते हैं - "खूव [1] क्या मलेक्षोका राजा भी मलेक्ष ही होगा ? और भीलोका राजा भी भील ही हो, इसका क्या प्रमाण ? यदि कोई हिन्दुस्तानका राजा हो तो हिन्दू ही हो सकता है क्या ? और जरमनका जरमनी तथा मुसलमानोका मुसलमान ही हो सकता है क्या ? यदि ऐसा ही नियम होता तो चक्रवर्ती जो कि मलेक्षखण्डके भी राजा होते हैं, लेखक महोदयके विचारानुसार वे भी मलेक्ष कहे जाने चाहिये। इस नियमानुसार पूज्य तीर्थंकर श्री शातिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ जो कि चक्रवर्ती थे, लेखक महोदयकी सम्मति अनुसार वे भी इसी कोटिमें आसकेगे ? अत. इसका कोई नियम नही है कि किसी जाति या देशका राजा भी उसी जातिका हो अत इस लेखसे यह सिद्ध होता है कि जरा कन्या भील जातिकी नही थी।" पाठकजन देखा । समालोचकजी कितनी भारी समझ और अनन्य साधारण बुद्धिके आदमी है। उन्होने लेखकके कथनकी कितनी बढिया समालोचना कर डाली। और कितनी आसानीसे यह सिद्ध कर दिखाया कि 'जरा' भील जातिकी कन्या नही थी। हम पूछते हैं यह कौन कहता है और किसने कहाँपर विधान किया कि म्लेच्छोका राजा म्लेच्छ ही होता है, भीलोका राजा भील ही होता है, हिन्दुस्तानका राजा हिन्दू ही होता है और मुसलमानोका
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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