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________________ विवाह - क्षेत्र- प्रकाश १३७ उक्त ग्रथका स्वाध्याय खास गाँव (1) देववन्द - घोषणा की है कि हाँ, समालोचकजीकी एक दूसरी, बिलकुल नई, ईजादका उल्लेख करना तो रह ही गया, और वह यह है कि उन्होंने लेखकपर इस बातका आक्षेप करते हुए कि उसने भाषाके छदोवद्ध 'आराधना' कथाकोशके कथनपर जानबूझकर ध्यान नही दिया, यह विधान किया है कि उसने अवश्य किया होगा, क्योकि वह उसके का छपा हुआ है' । और इस तरहपर यह जिस नगर या ग्राममे कोई ग्रथ छपता है वहाँका प्रत्येक पढा लिखा निवासी इस बातका जिम्मेवार है कि वह ग्रथ उसने पढ लिया है और वह उसके सारे कथनको जानता है । और इसलिये बम्बई, कलकत्ता आदि सभी नगर ग्रामोके पढे लिखोको अपनी इस जिम्मेदारीके लिये सावधान हो जाना चाहिये । और यदि किसीको यह मालूम करनेकी जरूरत पडे कि बम्बई मे कौनकोन ग्रन्थ छपे हैं और उनमे क्या कुछ लिखा है तो वहाँके किसी एक ही पढे-लिखेको बुलाकर अथवा उससे मिलकर सारा हाल मालूम कर लेना चाहिये । यह कितना भारी आविष्कार समालोचकजीने कर डाला है । और इससे पाठकोको कितना लाभ पहुँचेगा || परन्तु खेद है लेखक तो कई बार अपने अनेक स्थानोके मित्रोको वहाँके छपे हुए ग्रथोकी बावत कुछ हाल दर्याप्त करके ही रह गया और उसे यही उत्तर मिला कि 'हमे १ " बाबू साहबके खास गॉव देववन्दमें जो 'आराधनाकथाकोश' छपा है उससे भी यह सदेह साफ तौरसे काफूर हो जाता है क्या वाबू साहवने अपने यहाँ से प्रकाशित हुए ग्रन्थोंका भी स्वाध्याय न किया होगा ? किया अवश्य होगा। परन्तु उन्हें तो जिस - तिस तरह अपना मतलब वनाना है ।"
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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