SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३५ विवाह-क्षेत्र-प्रकाश पाया जाता है कि देवकी उन राजा देवसेनकी पुत्री थी जो कंसके पिता उग्रसेनके सगे भाई थे-दूसरे, यदि ऐसा मान भी लिया जाय तो कसकी ऐसी दत्तकतुल्य वहन वसुदेवकी भतीजी ही हुई-उसमे तथा कसकी सगी वहनमे सम्वन्धकी दृष्टिसे कोई अन्तर नही होता-और इसलिये भी यह नही कहा जा सकता कि वसुदेवने अपनी भतीजीसे विवाह नही किया । ऐसा कहना मानो यह प्रतिपादन करना है कि 'एक भाईके दत्तकपुत्रसे दूसरा भाई अपनी लडकी व्याह सकता है अथवा उस दत्तकपुत्रकी लडकीसे अपना या अपने पुत्रका विवाह कर सकता है' । क्योकि वह दत्तक ( गोद लिया हुआ) पुत्र उस भाईका असली पुत्र नही है किन्तु माना हुआ पुत्र है। परन्तु जहाँ तक हम समझते हैं समालोचकजीको यह भी इष्ट नही हो सकता, फिर नहीं मालूम उन्होंने क्यो-इतने स्पष्ट प्रमाणोकी मौजदगीमे भी यह सब व्यर्थका आडम्बर रचा है ? ___रही कुरुवशमै उत्पन्न होनेकी बात, वह भी ठीक नही है। 'कुरुवंशोद्भवा' का शुद्ध रूप है 'कुरुवंश्योद्भवां', जिसका अर्थ होता है 'कुरुवंश्या स्त्रीमे उत्पन्न' ( कुरुवश्याया उद्भवा या ता कुरुवश्योद्भवा )-अर्थात, देवकीकी माता धनदेवी कुरुवश्या थी-कुरुवशमे उत्पन्न हुई थी-न कि देवकी कुरुवशमे उत्पन्न हुई थी। समालोचकजीने भापाके जो निम्न छद उद्धृत किये हैं उनसे भी आपके इस सब कथनका कोई समर्थन नही होता - अव नगरी मृतिकावती, देवसेन महाराज। धनदेवी ताके तिया, कुरुवशन सिरताज ।। ताके पुत्री देवकी, उपजी सुन्दर काय । सो वसुदेव कुमार सग, दीनी कंस सु ब्याह॥
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy