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________________ १३२ युगवीर-निबन्धावली गया है उन्हे समालोचकजीने ठीक तोरसे समझा मालूम नही होता । आपने यह भी नही खयाल किया कि इन श्लोकोका पाठ कितना अशुद्ध हो रहा है और इसलिये मुझे उनका शुद्ध पाठ मालूम करके प्रस्तुत करना चाहिये – वैसे ही अशुद्धरूपमे आराधनाकथाकोशकी छपी हुई प्रतिपरसे नकल करके उसे पाठकोंके सामने रख दिया है । " देवकभूपतेः " की जगह देवकिभूपतेः पाठ देकर आपने देवकीके पिताका नाम ' देवकी' बतलाया है परन्तु वह ' देवक ' है — देवकी नही । हिन्दुओके यहाँ भी देवकीके पिताका नाम 'देवक' दिया है और कंसके पिता उग्रसेनका सगा भाई बतलानेसे यदुवंशी भी सूचित किया है, जैसा कि उनके महाभारतान्तर्गत हरिवशपुराणके निम्न वाक्योसे प्रकट है आहुकस्य तु काश्यायां द्वौ पुत्रौ संबभूवतुः ॥ २६ ॥ देवकचोमसेनश्च देवपुत्रसमावुभौ । देवकस्याभवन्पुत्राश्चत्वारस्त्रिदशोपमाः ॥ २७ ॥ देववानुपदेवश्च सुदेवो देवरक्षितः । कुमार्यः सप्त चाप्यासन्वसुदेवाय ता ददौ ॥ २८ ॥ देवकी शांतिदेवा च सुदेवा देवरक्षिता । वृकदेव्युपदेवी च सुनाम्नी चैव सप्तमी ॥ २९ ॥ नवोग्रसेनस्य सुतास्तेषां कंसस्तु पूर्वजः । न्यग्रोधश्च सुनामा च ककः शकुः सुभूमिपः ॥ ३० ॥ - ३७ वा अध्याय । "" 11 — और इसलिये देवक देवसेनका ही लघुरूप है । उसी लघु नामसे यहाँ उसका उल्लेख किया गया था, जिसे समालोचकजीने नही समझा और देवकीके पिताको भी देवकी बना दिया । " वासुदेवाय" पाठ भी अशुद्ध है, उसका शुद्ध रूप है " वसुदेवाय"
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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