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________________ १३० युगवीर-निवन्धावली जान पड़ता है समालोचकजीने वैसे ही बिना समझे उक्त पद: परसे देवकीको कसके मामाकी पुत्री और देवसेनको कसका मामा कल्पित कर लिया है और अपनी इस नि सार कल्पनाके आधारपर ही आप अपने पाठकोंका यह सदेह दूर करनेके लिये तैय्यार हो गये हैं कि जिनसेनने हरिवशपुराणमे देवकीको कसकी बहन क्योकर लिखा है । यह कितने साहसकी बात हैं । आपने यह नहीं सोचा कि जिनसेनाचार्य तो स्वय देवकीको राजा उग्रसेनके भाईकी पुत्री बतला रहे हैं और देवसेन उग्रसेनका सगा भाई था, फिर वह कसके मामाकी लडकी कैसे हो सकती है ? वह तो कसके सगे चचाकी लडकी हुई। परन्तु आप तो सत्य पर पर्दा डालनेकी धुनमे मस्त थे आपको इतनी समझ-बूझसे क्या काम ? । यहाँपर इतना और भी बतला देना उचित मालूम होता है कि पहले जमानेमे मामाकी लडकीसे विवाह करनेका आम रिवाज था और इसलिये मामाकी लडकीको उस वक्त कोई बहन नही कहता था। और न शास्त्रोमे बहन रूपसे उसका उल्लेख पाया जाता है। समालोचकजी लिखनेको तो लिख गये कि देवकी कसके मामाकी लडकी थी और इसलिये कंस उसे बहन कहता था परन्तु पीछेसे यह बात उन्हे भी खटकी जरूर है और इसलिये आप समालोचनाके पृष्ठ ११ पर लिखते हैं .__ "देवकी कसके मामाकी बेटी थी। आजकल मामाकी बेटीको भी बहन मानते हैं। शायद इसपर बाबूसाहब यह कह सकते हैं पहले मामाकी बेटी बहन नही मानी जाती थी, क्योकि लोग मामाकी बेटीके साथ विवाह करते थे और दक्षिणदेशमे अब भी करते हैं, परन्तु इस सन्देहको आराधनाकथाकोशके श्लोक अच्छी तरह दूर कर देते हैं साथमे बाबूसाहबके खास गाँव देवबदमे जो
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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