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________________ १२४ युगवीर-निवन्धावली स्वस्याश्चेष्टितमेतेन प्रकाशयति ते मुने। इत्यवोचत्तदाकर्ण्य सकोप' सोऽपि गुप्तिभित् ॥३७२॥ इन वाक्यो-द्वारा यह बतलाया गया है कि-'कंसने नृप वसुदेवको अपने नगरमे लाकर उन्हे देवसेनकी पुत्री अपनी छोटी वहन 'देवकी' प्रदान की ( विवाह दी)। इसके बाद कुछ काल बीतनेपर एक दिन 'अतिमुक्त' नामके मुनि भिक्षाके लिये कसके राजभवनपर आए। उन्हे देखकर ( कसकी रानी) जीवद्यशा प्रसन्न हो हँसीसे कहने लगी देखो। यह देवकीका रजस्वल आनन्द वस्त्र है और इसके द्वारा तुम्हारी छोटी बहन ( देवकी ) अपनी चेष्टाको तुमपर प्रकट कर रही है।' इसे सुनकर मुनिको क्रोध आ गया और वे अपनी वचनगुप्तिको भग करके कहने लगे, वया कहने लगे, यह अगले पद्योमे बतलाया गया है। यहाँ देवकीके लिये दो जगहपर 'अनुजा' विशेषणका जो प्रयोग किया गया है वह खासतौरसे ध्यान देने योग्य है। अनुजा कहते हैं कनिष्ठा भगिनी' को-younger sister'को--जो अपने बाद पैदा हुई हो ( अनु पश्चात् जाता इति अनुजा ।) और यह शब्द प्राय अपनी सगी बहन अथवा अपने सगे ताऊ-चचाकी लडकीके लिये प्रयुक्त होता है। कंस उनसेनका पुत्र था और उग्रसेन, देवसेन दोनो सगे भाई थे, यह बात इस ग्रन्थ ( उत्तरपुराण ) मे भी इससे पहले मानी गई है और इसलिये कसने १. देखो 'शब्दकल्पद्रुम' कोश । २ देखो वामन शिवराम आप्टेकी सस्कृत-इग्लिश डिक्शनरी । ३. पद्मावत्या द्वितीयस्य वृष्टेश्च तनयास्त्रय । उग्र देव-महाद्युक्तिसेनान्ताश्च गुणान्विता. ॥ १० ॥ x
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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