SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवाह क्षेत्र-प्रकाश १२३ राजा उग्रसेनके दो सगे भाई थे—देवसेन और महासेनजैसा कि पहले उद्धृत की हुई वशावलीसे प्रकट है। उनमेसे, यद्यपि, यहॉपर किसीका नाम नही दिया, परन्तु प० दौलतरामजीने अपनी भाषा-टीकामे उनसेनके इस भाईका नाम 'देवसेन' सूचित किया है । यथा - "हे पूज्य यह रहस्य गोप्य राखियो। या देवकीके पुत्र ते तिहारा वदिगृह तै, छूटना होयगा। तब उग्रसेन कही यह मेरे भाई देवसेनकी पुत्रीका पुत्र वैरीकी बिना जानमे सुखते रहियो।" प० गजाधरलालजीने भी इस प्रसगपर, अपने अनुवादमे, 'देवसेन' का ही नाम दिया है जिसका पीछे उल्लेख किया जा चुका है और उनकी, प० दौलतरामजी वाली इन पक्तियोके आशयसे मिलती-जुलती, पक्तिया भी ऊपर उद्धृत की जा चुकी है। हो सकता है कि उनका यह नामोल्लेख ५० दौलतरामजीके कथनका अनुकरण मात्र हो, क्योकि तीन साल बादके अपने विचार-लेखमे, जिसका एक अश 'पद्मावतीपुरवाल' से ऊपर उद्धृत किया जा चुका है, उन्होने स्वय देवकीको राजा उग्रसेनकी पुत्री स्वीकार किया है। परन्तु कुछ भी हो, ५० दौलतरामजीने उग्रसेनके उस भाईका नाम जो देवसेन सूचित किया है वह ठीक जान पडता है और उसका समर्थन उत्तरपुराण ( पर्व ७० ) के निम्न वाक्योसे होता है - अथ स्वपुरमानीय वसुदेवमहीपतिम् । देवसेनसुतामस्मै देवकीमनुजां निजाम् ॥३६९||" विभूतिमद्वितीर्यैव काले कसस्य गच्छति । अन्येधुरतिमुक्ताख्यमुनिर्भिक्षार्थमागमत्॥३७०||" राजगेहं समीक्ष्यैनं हासाजीवद्यशा मुदा । देवकीपुष्पजानन्दवस्त्रमेतत्तवानुजा ॥३७१॥
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy