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________________ प्राक्कथन द्यानतराय, दौलतराम, टोडरमल्ल, गुमानीराम, जयचन्द, सदासुख, त्यागी वावा दौलतराम, आदि अनेक श्रावक विद्वानोने स्थापित की थी। इनमेसे कईएक आज भी 'आचार्यकल्प' विशेषणके साथ स्मरण किये जाते हैं। इन नरपुगवोंने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष-रूपसे निहित स्वार्थोसे लोहा लिया और धर्मका धार्मिक-व्यवसायियोंके चगुलसे उद्धार करनेका और उसे कूपमण्डूकताकी दलदलसे उवारनेका स्तुत्य प्रयास किया था। जिस प्रकार इन पुराने क्रान्तिकारियोमेसे अधिकाश पेशेवर पडित नही थे उसी प्रकार इस युगके उपरोक्त समाज-उद्बोधक लेखक एव कार्यकर्ता भी पेशेवर पडित नही रहे हैं। देशमे आज अनेक राज्याश्रित या राज्यमुखापेक्षी साहित्यकारो एव कवियोंके विपयमे जो प्रवाद प्रचलित हैं वेही धनी सेठोंके आश्रित, उनके मुखापेक्षी अथवा उनके द्वारा स्थापित, सचालित या पोपित सस्थाओ, सगठनो आदिमें चाकरी करनेवाले जैन पडितो पर भी प्राय लागू होते हैं। उनमे भी दो-चार अपवादरूप हैं, किन्तु अपवाद होना ही नियमको सिद्ध करना है। मुख्तार साहवके वर्गके विद्वानो या समाजसेवियोने भी अपने समकालीन तथा अपने कार्यसे प्रभावित श्रीमन्तोका सहयोग एव आर्थिक सहायता भी वहुधा प्राप्त की, किन्तु समान स्तर पर, अपने स्वाभिमानको अक्षुण्ण रखते हुए स्वामी-सेवक अथवा आश्रयदाता-आश्रितभावसे नही, और सो भी केवल कार्यके लिये, अपने निजी उपयोगके लिये नहीं। यही कारण है कि उनके लेखो और वक्तव्योमे आत्मनिर्भरता-प्रसूत आत्मविश्वास एव निर्भीकता रही । उन्होने कभी व्यक्तिकी अपेक्षा नहीं की, जो सत्य समझा उसीको महत्व दिया। और शायद इसीलिये श्रीमन्तवर्ग तथा श्रीमन्तोका आश्रित विद्वद्वर्ग इन लोगोंसे प्राय. अप्रसन्न ही रहा । मुख्तार साहब उक्त स्वान्त सुखाय समाजसेवियोकी तथोक्त विशेषताओके ज्वलत उदाहरण हैं, उनके सामूहिक प्रतीक हैं । इसमें सन्देह नहीं कि उन्होने अनेक अशोमे अपना 'युगवीर' उपनाम सार्थक किया है। अपने इस लगभग ७० वर्प जितने दीर्घ-कार्यकालमें, जिसमे प्राय. पीढियाँ समाप्त हो जाती हैं, उन्होंने विपुल साहित्यका सृजन किया है। उनका साधनाक्षेत्र भी पर्याप्त विविध रहा है। समन्तभद्राश्रम तथा वीर.
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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